प्रकृति संतुलन बनाना जानती है

जब-जब धरा पर पाप बढ़ता है
 बढ़ जाता है
 आतताईयों का बोलबाला
 मानव-मानव के बीच
 बढ़ जाती है खाई 
 संवेदनाएं खत्म हो जाती हैं
 तो बनती है महाविनाश की स्थिति!
 दुनियां के किसी भी कोने में
 छुपकर भी हम नियति के
 क्रूरता से नहीं बच पाते।
 हम विनाश के रास्ते
 स्वयं तैयार करते हैं
 प्रकृति संतुलन बनाना जानती है
 क्या रूस,क्या अमेरिका,क्या ब्रिटेन
 या फिर,33 करोड़ देवी देवताओं का
 हमारा देश--
 जब सत्ता अनियंत्रित होती है
 मंदिरों की घंटियां
 मस्ज़िदों के अज़ान
 चर्च और गुरुद्वारे
 जिसे हमने अपनी-अपनी
 दुकान को चलाने के लिए बनाया है
 बंद हो जाते हैं सभी। 
 हम मनुष्य जब मनुष्यता भूल जाते हैं
 प्रकृति--
 आपदाओं के ओट से
 हमें प्रेम सिखलाती हैं।


डाॅ.चित्रलेखा