*ये एक अच्छे भले देश की बर्बादियों का शोर है --

#बैगपाइपर_इफ़ेक्ट


*जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे मारे जायेंगे


*ये एक अच्छे भले देश की बर्बादियों का शोर है.......
मेरा दावा है कि जिन लोगों ने आज इस गंभीर वक़्त में थाली बजाने-पटाखे दागने- शोर करने जैसी हरकत नहीं की होगी, शुरुवात में हँसते हुये..धीरे धीरे अवसाद की छुवन ज़रूर महसूस कर रहे होंगे। और ये भी यकीन है वो अपने इनकार के साथ अपने मुहल्ले,कालोनी, अपार्टमेंट के अकेले-दुकेले ही घर होंगे..,बोलिये ? हैं ना ?


देश तबाहियों के ढेर पर बैठा है, ऐसे में जो शोर और गुस्सा सरकार और सत्ता पर निकलना चाहिये कि..


- नये अस्पतालों का इंतज़ाम कहाँ है ? -महामारी से निपटने का ब्लूप्रिंट कहाँ है?  -प्राइवेट अस्पतालों को टेकओवर करके उनके वार्ड क्यों नहीं खोले जा सकते ?
-जांच की किट और बाकी संसाधन क्यों नही बढ़ाये जा रहे ?
-प्राइवेट हास्पिटल में 5000/ की जाँच एक लूट है ?


वहाँ पूरा देश एक नकारा और अंधविश्वासी सरकार के समर्थन में पटाखे छुड़ा रहा है, जी हां, पटाखे तक दगाये जा रहे हैं मेरी तरफ।


ये सारा तमाशा आपके लिये चेतावनी है, डर है कि आप अपनी तार्किकता के साथ अकेले हो..या भीड़ के साथ चलो वरना मारे जाओगे।


जैसे अलाई बलाई जला कर कोरोनो को भगाने की टोटका दे दिया गया हो। कौन कहता है कि ये डॉक्टर्स या सेवा देने वालों को शुक्रिया अदा करने के लिये था..


ये ताली बजाते,शंख बजाते ये पटाखे फोड़ते लोगों के चेहरे का आह्लाद, वो भंगिमा देखिये जैसे एक मज़ा आ रहा हो..शोर और जुनून का मज़ा..। डिस्टेंस मेंटेन करना गया भाड़ में, एक एक छत पर 30-30 ,40-40 लोग इकट्ठा होकर जैसे अपनी जेहालत का गगनभेदी एलान करने की मौज में हों।


सब जानते हैं नार्मल दिनों में भी बड़े बड़े शहरों के अस्पतालों में भी बेड नहीं मिलते, रूम तो जाने दीजिये..,कितने फोन सोर्स लगवाने के लिये आते हैं..


कोरोनो उतना ख़तरनाक नहीं, बल्कि इसकी संक्रामकता खतरनाक है बेहद खतरनाक, जो मौतों की वजह है, और हमारे यहां तो जाँच करने के केंद्र ही नहीं हैं, तो ये जानने का ही पर्याप्त सिस्टम नहीं कि किसके कोरोना है या नहीं। 


जाँच हो जाएगी तो इन्हें एडमिट करना पड़ेगा, आइसोलेशन में रखना पड़ेगा, वो जगह और बेड कहाँ हैं ?


इसलिये बिना जांच के वो सब अपनी कम्युनिटी में जा रहे हैं, जायेंगे ही, कुछ बचेंगे कुछ मरेंगे। आज बस- रेलवे स्टेशंस, गांवों की ओर जाते परिवहन में रेले देखिये।


और ये कुछ की संख्या लाखों में हो सकती है, बस ये चैनल और समाचारों पर नहीं आयेगी.. हर तरफ सब कुछ कंट्रोल है दिखा दिया जायेगा..


और एक दिन देश कोरोना पर विजय के लिये फिर थाली बजायेगा..हर चीज़ एक इवेंट है ,हर चीज़ एक शोर है, हर चीज़ एक विज्ञापन है, हर चीज़ एक मुनाफा है
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ये इतनी बड़ी आपदा है कि देश के सारे रेडक्रॉस सोसायटी सहित ये NCC ,NSS, लायंस फ़ायन्स क्लब्स सहित सबकी ट्रेनिंग हो जानी चाहिये थी कि लोगो को आइसोलेशन में रखने में क्या किया जाएगा।


हर गाँव, शहर, कस्बों और महानगर में खाली पड़े पार्कों, स्कूल्स को सेलेक्ट करके  अस्थायी अस्पताल बना देने चाहिये थे।


सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों , स्वास्थ्य मंत्रियों, मेयर्स, स्वास्थ्य सचिवों की संयुक्त बैठकें हो कर साझा प्लान बना लेना चाहिये था। अरे ऐसे मौके पर संसद की ही संयुक्त कमेटी, निगरानी समिति आदि बननी चाहिये पक्ष-विपक्ष सबको मिला कर। मगर इस मुद्दे पर हुआ क्या..बिना किसी तैयारी के सिर्फ थाली पीटने और खुद को घर मे बन्द कर लेने का इकतरफा संदेश।


सूचनाएं और योजना पहुंचाने के लिये सभी चैनल्स का सुबह और शाम का एक स्लॉट कॉमन होल्ड कर देना चाहिए था। मगर वहाँ भी अंधविश्वासों का प्रचार प्रसार करना है। इससे बेहतर है अपने CDRI ,CSIR, रिसर्च इंस्टीट्यूट में भी निर्मल बाबा का दरबार लगवा दो। कुछ किराया ही मिलेगा।समोसा हरी चटनी के साथ खाएंगे तो कॅरोना भाग जाएगा क्योंकि हरी चटनी में प्राकृतिक तत्व होते हैं जो समोसे की तैलीय गर्माहट के साथ रासायनिक क्रिया करते हैं ..


अरे कमबख्तों ! डॉक्टर्स के लिये थाली पिटवाने की जगह उन्हें हर स्तर पर योजना बनाने में शामिल करना चाहिये था कि
उनके वर्कलोड को कैसे कम किया जायेगा, कैसे सपोर्ट सिस्टम को उनके लिये डिवेलप किया जाय इसकी प्लानिंग हो जानी थी।
हमारे देश की किस्मत थी कि चाइना, अमेरिका और इटली की अपेक्षा कोरोनो ने हमें पर्याप्त वक़्त दिया, उसने इतने मजबूत स्वास्थ्य सुविधाओं वाले देशों को छिन्न भिन्न करके अपनी संक्रामक ताकत दिखा दी थी।
जनवरी से आज 20 मार्च हो गयी और हम थाली बजा रहे हैं।थाली बजाओ क्योंकि तुम्हारी भीड़ ने कोरोनो से पहले साइंस की हत्या कर डाली है, विवेक की हत्या कर डाली है, तार्किक समझ की हत्या कर डाली है।


काश !! एक भी मौत कोरोना से न हो..
काश !! प्राकृतिक रूप से कुछ ऐसा हो कि ये आपदा बिना गरीबों, मजबूरों की जान लिये गुज़र जाय..


बाकी इन थालियों के शोर में जब तक भीड़ के हाथों मैं लिंच करके मारा नहीं जाता तब तक इस पागलपन को पागलपन कहने के लिये मजबूर हूँ
कल भगत सिंह ,सुखदेव ,राजगुरु का शहादत दिवस है...


काश उन्हें पता होता कि वो कैसा देश बनाना चाहते थे और क्या बन गया है..
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दीपक कबीर