सैराट’ का हिंदी-छत्तीसगढ़ी वर्सन ‘नदिया के पार’






70 साल पहले बनाया था एक ओबीसी डायरेक्टर किशोर साहू ने

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सिनेमा में दलित-सवर्ण प्रेम के संदर्भ अक्सर बात 1936 की ‘अछूत कन्या’ से शुरू होती है और 2016 की मराठी फिल्म ‘सैराट’ पर आकर सिमट जाती है. इन दोनों के बीच बिमल राय की ‘सुजाता’ (1959) की भी लोग चर्चा कर लेते हैं लेकिन 1948 की ‘नदिया के पार’ पर लोगों का ध्यान नहीं जाता. जो आजादी के तुरंत बाद बनी एक ऐसी फिल्म है जो ‘सैराट’ से करीब 70 साल पहले प्रदर्शित हुई थी. इसे 50 के पहले के ओबीसी समुदाय के एक सिने स्टार और डायरेक्टर किशोर साहू ने बनायी थी. दिलीप कुमार और कामिनी कौशल अभिनीत यह फिल्म तब ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. किशोर साहू रायपुर, छत्तीसगढ़ के रहने वाले थे और 40-50 के दशक में वे एक स्टार हीरो, डायरेक्टर और प्रोड्यूसर थे. 1948 में आई उनकी फिल्म ‘नदिया के पार’ कमाल की क्लासिक फिल्म है जिसमें आप न सिर्फ भारतीय समाज में व्याप्त जातीय संघर्ष का खूनी खेल एक अद्भुत प्रेम कहानी के माध्यम से देखते हैं, बल्कि यह भारत की एक ऐसी फिल्म भी है जिसमें आपको सुमधुर छत्तीसगढ़िया बोली और पर्यावरण सुनाई और दिखाई देता है. इसमें कामिनी कौशल मल्लाह जाति की ‘फुलवा’ बनी है और दिलीप कुमार ठाकुर जाति के ‘छोटे कुंवर’ बने हैं. अंत दुखांत है. यानी दोनों प्रेमी मारे जाते हैं. राजकपूर की ‘बॉबी’ किशोर साहू की ‘नदिया के पार’ की कहानी और सफलता दोनों को 1973 में दोहराती है. पर बॉबी का अंत सुखांत है क्योंकि वह जाति विमर्श को छूकर रह जाती है. अफसोस है कि एक ओबीसी समुदाय के हीरो-डायरेक्टर किशोर साहू द्वारा बनाई गई जाति विमर्श वाली यह जबरदस्त फिल्म ‘नदिया’ के पार’ आज सात दशक बाद भी चर्चा से बाहर है.