इंसान अब बलवान हो गया है. वह कुछ भी कर सकता है. यदि राजसत्ता उसके साथ हो तो नदी, समुद्र, जंगल, पहाड़ किसी को भी खत्म करने की कवायद करना उसके बाएं हाथ का खेल है. वह तोता, मैना, कबूतर, मोर को उड़ाकर यह साबित कर सकता है कि यही "विकास" है. सुनने वाले तालियां बजाकर व जयकारा लगा कर उत्साहवर्धन भी कर देते हैं. हमारे युग का यही सच है.
काशी के मशहूर ललिता घाट पर हमने देखा गंगा की जलधारा को प्लास्टिक की बोरियों में बालू भरकर फेंकते हुए. जी, हां..! प्लास्टिक की बोरियां..! आपने सही सुना है. यह बात अलग है कि शासन ने प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है. लेकिन जब गंगा को "प्रदूषण मुक्त" करना है तो यह कार्य बिना प्लास्टिक की बोरियों के संभव नहीं है.
किसी नदी की जलधारा को बांधना आसान काम थोड़े है. इसके लिए "विकास" के प्रति प्रतिबद्धता और संकल्प शक्ति की जरूरत है. हमारे वर्तमान जनप्रतिनिधियों के पास यह शक्ति है. काशीवासियों को इससे अब कोई मतलब नहीं है. वे खुश हैं कि गंगा को प्रदूषण मुक्त किया जा रहा है. कैसे..? यह सवाल महत्वपूर्ण नहीं है. भविष्य में गंगा की जलधारा का स्वरूप कैसा होगा ? फिलहाल इसके बारे में कुछ कहना संभव नहीं है. इस सवाल का जवाब भविष्य देगा.
अब तक एक अनुमान के मुताबिक एक लाख से अधिक प्लास्टिक की बालू से भरी बोरियां ललिता घाट के सामने की गंगा की जलधारा में फेंकी जा चुकी हैं. चार पाइपों से गंगा की तलहटी से बालू भी खींच करके घाट किनारे रेत का मैदान बनाया जा रहा है. वह अलग है. काशी के गंगाभक्त और नदी विशेषज्ञ खामोश हैं. उनकी चुप्पी पर अब मुझे कोई आश्चर्य नहीं होता है. यह उनका अपना सच है. कभी-कभी जब मौसम अनुकूल रहता है तो सेमिनार या घाट किनारे कार्यक्रम आयोजित करके वे अपने तरीके से गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कसमें खा लेते हैं. गंगापुत्रों के लिए इतना पर्याप्त है.
इससे पहले घाट किनारे रंगबिरंगी लाइटों को लगाकर शाम होते ही रोशनी बिखेर करके गंगा को प्रदूषण मुक्त किया जा रहा था. जो बारिश के दिनों में गंगा का जलस्तर बढ़ने से अस्त-व्यस्त हो गया है. कुछ घाटों पर साल 2018 में पत्थर की पानी की टंकियां लगाई गईं थीं, जिसमें मिट्टी पड़ी है. आज तक इन टंकियों में पानी ही नहीं आया है. यही स्थिति घाट पर बने मूत्रालयों की भी है.
अब अक्टूबर माह से ललिता घाट पर गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की कवायद की जा रही है. अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ललिताघाट पर चल रहे कार्य का अवलोकन किया है. अखबारों में छपी खबरों के मुताबिक इस कार्य से योगीबाबा खुश हैं. उन्होंने काम में तेजी लाने का अधिकारियों को निर्देश दिया है. लगता है कि जल्दी ही बनारस में गंगा प्रदूषण मुक्त हो जाएंगी ? अच्छी बात है. काशीवासी भी तो यही चाहते हैं. नमामि गंगे..!
#पुनश्च : बनारस में ललिता घाट पर गंगा की जलधारा को प्लास्टिक की बोरियों में बालू भरकर उसे बांधने का दृश्य..! चार पाइपें भी लगीं हैं, जिससे गंगा की तलहटी से बालू खींचकर घाट किनारे एकत्रित किया जा रहा है. कहते हैं कि यहां एक बड़ा प्लेटफार्म बनेगा, जहां जहाज आकर रुकेगी. यह तस्वीर 5 नवम्बर को सायंकाल की है. नमामि गंगे..!