उधर अमरीका भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सबसे बड़ा चैम्पियन उदार देश है। वहाँ अगले कुछ दिनों में जो होने की आशंका है वह पूरी दुनिया में फासिस्टों के लिए मॉडल का काम करेगा। अतः उस पर नजर रखना अहम है।
ट्रंप खेमा कोर्ट पुलिस और चुनाव तंत्र की मदद से न सिर्फ खुलेआम बहुत से वोटरों को वोट डालने से रोक रहा है और उन्हें अवैध घोषित कर रहा है या तैयारी कर रहा है बल्कि विपक्षी रैलियों तक को जबरदस्ती रोक दे रहा है।
उधर ट्रंप ने कल एक भाषण में सुप्रीम कोर्ट को धन्यवाद भी बोल दिया! उसके रहते ट्रंप को कैसे हराओगे! ट्रंप और उसके खेमे ने अपनी वो योजना स्पष्ट कर दी है जिसका अभ्यास बोलिविया में इवो मोरालेस को चुनाव जीतने के बावजूद सत्ता पलट के लिए किया गया था - अगर शुरुआती गिनती में ट्रंप जरा भी आगे हुआ तो वह, उसके समर्थक और उनका समर्थक मीडिया जीत का ऐलान कर देगा और आगे गिनती चलने ही नहीं देगा। उसके वकील तैयार बैठे हैं नीचे से ऊपर की अदालतों में मुकदमे दायर करने के लिए जिसमें रिपब्लिकन जज उसे जीता घोषित कर देंगे। कावानौ और बैरेट जैसे जज खुलेआम ऐसा संकेत दे रहे हैं कि मतदान दिवस अर्धरात्रि के बाद गिनती नहीं चलने दी जाएगी। ट्रंप के समर्थक भी हथियारों के साथ सड़क पर उतार आएंगे विरोध रोकने के लिए। न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों तक में डरे लोग राशन इकट्ठा कर रहे हैं और दुकान मालिक काँच की खिड़कियों पर पटरे लगा रहे हैं। हथियारों की बिक्री भी तेजी से हो रही है।
हालाँकि पोल बाइडेन को आगे दिखा रहे हैं पर शुरुआती गिनती में ट्रंप के आगे होने की संभावना है क्यों भारत के उलटे वहाँ डाक मतपत्र बाद में गिने जाते हैं और चुनाव के दिन हिंसा व कोविद के डर से ट्रंप विरोधी 3-4 हफ्ते पहले से डाक मतपत्रों का प्रयोग कर रहे हैं बल्कि इस बार मुख्य मतदान ही डाक मतपत्रों से हुआ है। कल तक ही 9 करोड़ वोट डाले जा चुके थे। ये लिफाफों में हैं और इनके हस्ताक्षर मिलाये जाएंगे इसलिए इनकी गिनती पूरी करने में वक्त लगने वाला है। उधर ट्रंप खेमा शुरू से ही 3 तारीख को शारीरिक रूप से वोट डालने की मुहिम चला रहा है। अतः शुरुआती गिनती में उसे लाभ मिलने की संभावना है।
ये खुलेआम धांधली और सीनाजोरी का मॉडल अगर कामयाब रहा तो दुनिया भर की फासिस्ट ताकतों का मन बहुत बढ़ जाएगा, इसे अलग अलग संस्करणों में दोहराया जाएगा। हाँ, अगर कोई सिरफिरा इक्का दुक्का विरोधी व्यक्ति गुस्से और उग्रता में इसके विरुद्ध कुछ गलत कदम उठा बैठा तो तमाम लिबरल और कुछ 'वामपंथी' भी उदार देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा बता ट्रंप के समर्थन में खड़े हो जाएंगे क्योंकि शोषण की व्यवस्था द्वारा लाखों-करोड़ों मेहनतकशों के साथ की जाती निरंतर हिंसा तो जनतंत्र में स्वीकार्य है, पर असली खतरा एक-दो सिरफिरों द्वारा की गई हिंसा से होता है। यही बहुत पुरानी लिखी और हज़ारहा बार दोहराई गई लिबरल पटकथा है!
टिपिकल लिबरल तर्क यही है - व्यवस्था की हिंसा रूटीन अतः स्वीकार्य या नजरंदाज हो सकती है। असली खतरा एक दो सिरफिरों की निंदनीय हिंसा से है। व्यवस्था की हिंसा के बजाय मुख्य विरोध इसका किया जाना है। यह मध्य वर्गीय लिबरल की वर्ग स्थिति से पैदा तर्क है।