ऐसे ही तो कोई समाज तालिबानी नहीं बन जाता !






70 के दशक तक काबुल यूनिवर्सिटी दक्षिण एशिया का सबसे बेहतर शिक्षा संस्थान माना जाता था।



फिर सोवियत संघ को निकालने के बहाने जिया उल हक़ ने आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दिया और अमेरिका ने दखल देते हुए 9/11 के बाद पूर्ण रूप से कब्ज़ा कर लिया।



आज उस देश की वास्तविक आय पड़ोसी पाकिस्तान से कई गुना अधिक है और जीवन स्तर कई गुना नीचे।



लेकिन क्यों न हम भारत की चिंता करे और नेहरूजी से लेकर आज तक के नेताओ की शिक्षा तथा मानसिक स्तर का तुलनात्मक समीक्षा करें !



नेहरू जी की अपनी शिक्षा से लेकर अटल बिहारी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, नरसिम्हा राव तथा डॉ मनमोहन सिंह जी तक की शिक्षा की जानकारी ले।



प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद से लेकर स्मृति ईरानी और वर्तमान शिक्षा मंत्री की अपनी शिक्षा तथा बौद्धिक स्तर की तुलना करे।



दुर्भाग्य से सांप्रदायिक दंगे फसाद के बाद एक दूसरे के मोहल्लों में जाने वाली शांति समितियों को याद करे और शंभू रैगर जैसी मानसिकता को बढ़ावा देने वाले समाज को सोचे तो स्पष्ट हो जाएगा कि हम लगभग आउटर तक तो पहुंच चुके है।



बिहार के दोनों उपमुख्य मंत्रियो की शिक्षा का स्तर स्पष्ट कर रहा है कि वर्तमान नेतृत्व देश को किस दिशा की ओर ले जाना चाहता है।



भारत को सर्वाधिक आईएएस देने वाले राज्य के ठेपा लगाने वाले नेताओ को यदि वहां की जनता ने स्वीकार कर लिया है तो हमे पीले तालिबान के शासन से कितनी देर तक दूर रखा जा सकता है।।


Parmod Pahwa