लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं

रुह भी होती है उस में ये कहाँ सोचते हैं

रूह क्या होती है इस से उन्हें मतलब ही नहीं

वो तो बस तन के तक़ाज़ों का कहा मानते हैं

रूह मर जाते हैं तो ये जिस्म है चलती हुई लाश

इस हक़ीक़त को न समझते हैं न पहचानते हैं



~ साहिर लुधियानवी