डॉक्टर लोहिया आज सर्वाधिक प्रासंगिक हैं

        समाजवाद के प्रणेता डॉ लोहिया को 53 की पुण्यतिथि मनाई


           डॉक्टर लोहिया आज सर्वाधिक प्रासंगिक हैं- प्रजापति


 छिंदवाड़ा- समाजवाद के प्रणेता डॉ राम मनोहर लोहिया की पुण्यतिथि प्रेस कांप्लेक्स में मनाई गई इस अवसर पर हिंद मजदूर किसान पंचायत मध्य प्रदेश के महासचिव डीके प्रजापति ने कहा कि डॉक्टर लोहिया आज के इस फासीवादी दौर में बहुत ज्यादा प्रासंगिक है डॉक्टर लोहिया ने समाजवाद की जिस परिभाषा को गढ़ने का काम किया वह मौजूदा दौर में देखने को नहीं मिलती है डॉक्टर साहब ने


अपने चार दशक के सार्वजनिक जीवन में भारत की आजादी, गोवा की मुक्ति, मणिपुर व अरुणाचल की भारत में एकजुटता, नेपाल में लोकतंत्र, तिब्बत की रक्षा तथा अमेरिका में रंगभेद की समाप्ति के लिए बार-बार सत्याग्रही बने।किसानों, मजदूरों, नौजवानों और विद्यार्थियों के लिए जेल गए।भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, संपत्ति और दर्शन में निहित ग़ैरबराबरियों और अन्यायों को दूर करने के लिए अलोकप्रिय अभियानों को चलाने का साहस दिखाया।


लोहिया ने वोट की ताकत का भी अद्भुत इस्तेमाल किया और सिखाया।अपनी दिशा को देश के सामने रखने के लिए सीधे, तब के प्रधानमंत्री और लगभग सर्वसम्मत देशनायक, जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ उम्मीदवार बने।जब1964के उपचुनाव में फर्रूखाबाद से जीतकर लोकसभा में पहुंचे तो संसद को देश का दर्पण बनाने का रास्ता सिखाया।सरकार पर गरीबों की उपेक्षा का दोष देते हुए गरीबों के प्रति सांसदों को जिम्मेदार बनाया।इसी तरह देश की संसद के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करके विपक्ष को जिम्मेदार और जनता का प्रवक्ता बनाने का अभ्यास कराया।लोहिया अपने जीवन में दो बार संसद का चुनाव हारे और दो बार जीते।हार के प्रसंगों को उन्होंने समाजवाद को मजबूत करने के लिए इस्तेमाल किया।जीतने के बाद कुल तीन बरस की अवधि में इतने प्रश्न उठाए और बहसें चलाईं कि समूची सामग्री को प्रकाशित करने के लिए16खंड छापने पड़े।


हमारी संसदीय प्रणाली के अबतक के इतिहास में किसी एक सांसद की इतनी सक्रियता का दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलेगा।फिर भी लोहिया समाजवादी से संसदवादी नहीं बने।उन्होंने सांसद रहते हुए भी सिविल नाफरमानी और रचनात्मक कार्यक्रमों तथा संगठनशक्ति


विस्तार को बराबर का महत्व दिया।आज पचास साल से ज्‍यादा का वक्‍त बीत गया और हम देखते हैं कि इस तरह की गिरफ्तारियां दिन के उजाले में धड़ल्‍ले से हो रही हैं। सरकार का अपने विरोधी स्‍वरों को गिरफ्तार करना और काले कानून लगाकर जेल में डालना उतना हैरतनाक नहीं है, जितना परेशान करने वाली है इस देश की चुप्‍पी। पचास साल पहले ऐसी किसी इक्‍का-दुक्‍का घटना पर आंदोलन हो जाते थे। आज हर एक जनविरोध को सत्‍ता के खिलाफ साजिश बताकर दबा दिया जा रहा है और कोई कुछ बोल नहीं रहा। ऐसे में डॉ. लोहिया को याद करना इस देश में आंदोलन और असहमति की परंपरा को एक बार फिर से जीना है। 


 


डीके प्रजापति