बौद्ध धर्म का पहला ग्लोबल प्रचारक धर्मपाल

१२ वी शताब्दी में तुर्को के आक्रमण के बाद बौद्ध धर्म भारत की मुख्य भूमि से एकदम खत्म हो गया। धर्मांध मुसलमान तुर्किक आक्रमणों के कारण भारत के बचे हुए बौद्ध भागकर तिब्बत एवं नेपाल के दुर्गम पहाड़ो में छिप गए। शंकराचार्य ने भी भारत में बौद्धों का बहुत संहार करवाया। भारत में नाम मात्र के बुद्धिस्ट हिमालय के दुर्गम इलाको और चिटगांव की पहाड़ियों में बचे। 1864 में श्रीलंका में एक ईसाई परिवार में एक बालक धर्मपाल पैदा हुआ।[ युवा होने पर वह २ बुद्धिस्ट मिसनरियो कर्नल अल्काट एवं रुसी महिला मैडम ब्लावट्स्की से मिला जो उस समय श्रीलंका में बौद्ध धर्म के बारे में पढ़ रहे थे। उस युवा ने अपने नाम के साथ अनागरिक जोड़ा ,अनागरिक मतलब जो कहीं का वासी न हो। अनागरिक धर्मपाल ने बौद्ध धर्म की शिक्षा लेने के बाद यूरोप ,अमेरिका और एशिया में बौद्ध धर्म का प्रचार किया। 1893 में शिकागो में हुए विश्व धर्म सम्मेलन में अनागरिक धर्मपाल ने बौद्ध धर्म का प्रतिनिधित्व किया। स्वामी विवेकानंद उस सम्मेलन में हिन्दू धर्म के आधिकारिक वक्ता नहीं थे इसलिए उन्हें बोलने के लिए कम समय मिला।धर्मपाल ने अपने समय में से ३ मिनट स्वामी विवेकानंद को दिए। धर्मपाल ने डॉक्टर आंबेडकर से 50 साल पहले तमिलनाडु में दलितों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। धर्मपाल ने महाबोधि सोसायटी की स्थापना की और महाबोधि मंदिर को हिन्दुओ के कब्जे से छुड़ाने के लिए आंदोलन किया। धर्मपाल को बौद्ध धर्म का पहला ग्लोबल प्रचारक माना जाता है। १९३३ में अनागरिक धर्मपाल का देहांत सारनाथ में हो गया। अनागरिक के अस्थि अवशेष मूल गंध कुटी में रख दिए गए। अनागरिक धर्मपाल ने भारत में में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवित किया।