सड़ी सुपारी की संस्कृति

सभी पंडिज्जी लोगों से क्षमा सहित l
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शब्द - हरिशंकर परसाई , कार्टून - बाप
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भारत में जितना व्यवस्थित धन्धा ब्राह्मण का है, उतना मारवाड़ी का भी नहीं । छिपकली गिरने में उसकी ज़रुरत, नया चूल्हा या नया झाड़ू शुरू करने में पण्डित की दखलंदाजी, मकान की नींव रखने में पण्डित और मकान गिराने में भी पण्डित की दक्षिणा और मुहूर्त । मनुष्य के जन्म के पहले से ही ब्राह्मण का धन्धा शुरू । जन्म लेते ही वह पकड़ लेता है । नामकरण, जन्म-कुण्डली, छठी, अन्नप्राशन, सभी में पण्डित-पुजारी चाहियें । फिर विवाह उसके बिना होगा नहीं । फिर गौना, फिर बच्चों का जन्म, यहाँ तक कि मृत्यु के समय भी गोदान लेने के लिए हाज़िर है, क्योंकि यहाँ दी गयी गऊ ही उस लोक में बैतरणी पार कराती है । मरने के बाद भी छुटकारा नहीं । श्राद्ध में वह दान ले जाता है और मिठाई खा जाता है । फिर छःमासी, बरसी में वह हाज़िर है । और जब तक मृतक के खानदान में एक भी आदमी जीवित है, तब तक वह हर साल पितृ-पक्ष में आयेगा और मृत के नाम पर भोजन करके दक्षिणा ले जायेगा । मारवाड़ी भी शरमा जाय इस व्यापार के सामने ।



(ये संयोग है कि व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई और कार्टूनिस्ट बालेन्द्रकुमार परसाईं ( बाप ) जन्म से ब्राहमण है और ये पोस्ट करने वाला व्यक्ति गोपाल राठी (यानी मैं ) जन्म से माहेश्वरी (मारवाड़ी) है l)


Balendra Kumar Parsai