आसमान में बड़े जहाज से सफेद फूल के गुच्छे की तरह खिलते हुये नीचे आना वाला सामान पी-7 पैराशूट है। इसमें 7 टन वजन तक का सामान नीचे उतारा जा सकता है। जीप, छोटे ट्रक जैसे सामान को उतारने के लिए इस पैराशूट का प्रयोग होता है। अभी तक इसे इम्पोर्ट किया जाता रहा है। अब पैराशूट फैक्ट्री , कानपुर में बनाये गए पैराशूट के सफल परीक्षण के बाद यह देश में ही बनेगा।
1942 में स्थापित पैराशूट फैक्ट्री पैराशूट बनाने वाली एकमात्र फैक्ट्री है। देश में कोई ऐसा संस्थान नहीं जहां पैराशूट बनाना सिखाया जाता हो। हर तरह के पैराशूट बनाने में सक्षम हैं पैराशूट फैक्ट्री के लोग। खानदानी हुनर की तरह यहां नए लोग पुराने लोगों से पैराशूट बनाना सीखते हैं। डिजाइन ठीक हो और मैटेरियल उपलब्ध हो तो यह अकेली निर्माणी देश और दुनिया की तमाम पैराशूट की जरूरतें पूरी कर सकती है।
सरकारी संस्थान अपनी अधिक लागत के लिएबदनाम हैं लेकिन पैराशूट फैक्ट्री में बनने वाले पैराशूट की लागत दुनिया की बड़ी पैराशूट बनाने वाली कम्पनियों से बहुत कम हैं -एक चौथाई से भी कम।
कई साल की मेहनत के बाद यह पैराशूट बना। इसके पहले जब भी बना इसमें कुछ न कुछ डिजाइन डिफेक्ट रहा। कभी कपड़ा गड़बड़, कभी डोरी। हर बार डिजाइनर की अनुभवहीनता का ठीकरा पैराशूट फैक्ट्री के मत्थे फूटता रहा। ऐसा लगभग हर उत्पाद में होता है।
बहरहाल कई बार की असफलताओं के बाद पी-7 पैराशूट का परीक्षण सफलत रहा। इसके लिए ओपीएफ के सभी लोग बधाई के पात्र हैं।
पी-7 पैराशूट के बाद अब अगला लक्ष्य पी-16 पैराशूट है। इसका उपयोग टैंक, तोप आदि को उतारने में होता है। आयुध पैराशूट फैक्ट्री में यह भी बन जायेगा।
इस पैराशूट को बनाने में 40 से अधिक असेम्बली लगती हैं। 15 लोगों के दो गैंग मिलकर महीने भर में एक पैराशूट बनाते हैं। इसकी टेस्टिंग के लिए जितनी जगह चाहिए होती है उतने में सौ मीटर की दौड़ हो जाये।
एक पैराशूट की कीमत लगभग एक करोड़ है। समझिए युध्द के लिए तैयारी में कितना पैसा लगता है।
आयुध निर्माणी परिवार का सदस्य होने के नाते और पैराशूट फैक्ट्री से जुड़ाव के नाते यह सफलता मेरे लिए भी खुशी और गर्व का विषय है। आयुध पैराशूट निर्माणी , कानपुर के महाप्रबन्धक और उनकी पूरी टीम को बधाई।