*निजीकरण*


*संविधान में आर्टिकल 21, 37, 38, 39 और 300 के रहते केन्द्र सरकार निजीकरण नहीं कर सकती और न ही निजीकरण पर कोई कानून बना सकती। यदि सरकार संविधान का उलंघन कर निजीकरण के लिए मनमाना कानून बनाती है तो सरकार अदालतों में टिक नहीं सकती वसरते न्यायालय सही न्याय करे तो संविधान का उलंघन देश द्रोह का अपराध है और उम्र कैद की सजा का प्रावधान है और सही निर्णय होने पर सरकार भंग हो सकती है आज अच्छी शिक्षा पा रहे सभी भारतीयों के बच्चे निजीकरण के कारण पूँजीपतियों के यहाँ 5000 के नौकर होंगे। सम्मानित साथियों संविधान सभा में इस बात पर विस्तार से चर्चा हुई थी कि देश में प्राइवेट सेक्टर तैयार किया जाए या पब्लिक सेक्टर/ सरकारी सेक्टर संविधान सभा की पूरी बहस के बाद संविधान निर्माताओं ने यह तय किया कि देश में व्यपक स्तर पर असमानता है और असमानता को दूर करने के लिए पब्लिक सेक्टर यानि सरकारी सेक्टर तैयार किया जाए यह संविधान निर्मात्री सभा की सहमति हुई थी तथा संविधान के आर्टिकल 37, 38, 39 में भी सरकारी सेक्टर को केवल बढावा देना ही नहीं बल्कि ऐसी किसी भी प्रकार की नीति बनाने का प्रतिषेध किया है कि जिससे निजीकरण को बढ़ावा नहीं मिलना चाहिए संविधान में यह व्यवस्था की गयी है कि सरकार ऐसी कोई नीति नहीं बनाएगी जिससे कि देश का अधिकांश पैसा ,संपत्ति कुछ गिने चुने लोगों के हाथों में इकट्ठा हो जाए इसके बाद संविधान में 42वाँ संशोधन आया जिसे माननीय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई इसमे भी इस केस को गोरखनाथ केस के नाम से जाना जाता है इसमें भी यही कहा गया कि असमानता को दूर करने के लिए निजीकरण के बजाय सरकारी सेक्टर को बढ़ावा दिया जाए। यही नहीं बल्कि इंदिरा साहनी के निर्णय में भी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के इन आर्टिकल्स को व्यापक जनहित में मानते हुए बिलकुल सही माना संविधान में इन आर्टिकल्स के रहते हुए केन्द्र सरकार कोई भी ऐसा कानून नहीं बना सकती है जो कि देश के 135 करोड लोगों के खिलाफ़ हो और गिने चुने उद्योगपतियों को इसका फायदा मिले संविधान में निजीकरण की इस बात के लिए मना किया गया है जबकि आज सरकार सरकारी सेक्टर को निजी हाथों में बेच रही है और ऐसी स्थिति में भारत की कम्पनियों के साथ मिलकर विदेशी कम्पनियाँ भी खरीद सकतीं हैं इससे देश गुलाम भी हो सकता है अतः इससे आर्टिकल 300 का भी उलंघन हो रहा ह