नीलकंठ का घर तोड़ा जा चुका था. चारों तरफ मलबा बिखरा था. घर के अंदर एक गुफ़ा थी. उसी में वह रहते थे. उनके भक्त उन्हें छोड़कर जा चुके थे. महाबली उन्हें मुक्त करना चाहते थे.
गुफ़ा में थी कार्बन डाई आॅक्साइड
महाबली की इच्छा थी कि
वह खुली हवा में सांस लें
हवा जहरीली हो गई थी
शहर में अफरातफरी मची थी
एक अदृश्य बीमारी
तेजी से पांव फैला रही थी
लोग नाक, कान, हाथ, सिर को
बांधकर अपनी-अपनी गुफ़ाओं में
छिपे थे, आदमी को डर था आदमी से
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था
इस शहर में..!
सबके फेफड़े सिकुड़ने लगे
गले में खरास और नाक में आए पानी से
लगा महाकाल खड़े हैं सामने
गुफ़ा में बैठे नीलकंठ
उड़ गए आसमान में
यह उनकी मुक्ति थी
मुक्तिधाम के पीपल के पेड़ पर
बैठे नीलकंठ देख रहे थे
अपने टूटे घर और उजड़ी बस्ती
में फैले मलबा, पत्थर के टुकड़े
और विनायक को
उन्हें आॅक्सीजन की जरूरत थी
हवा हो गई जहरीली
ऋषि कर रहे थे उनकी बखान
यह मुक्तिपर्व है..!
#सुरेश_प्रताप