मज़दूर और किसान...

भारत में आम जनता के मुद्दे पर सबसे ज़्यादा मुखर रहने वाली कम्युनिस्ट पार्टी ने जनता को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिये कई संगठन बनवाये या उन्हें सहयोग दिया । छात्रों के ,महिलाओं के, नौजवानों के, लेखकों के ,संस्कृतिकर्मियों के..


यह संगठन अपने समूह के मुद्दों पर तो संघर्ष करते मगर समाज के दूसरे मुद्दों पर भी अपने संगठनात्मक सहयोग के लिये तैयार रहते। इन सबकी अपनी अपनी पहचानें ,नियम और झंडे थे..



मगर किसान और मज़दूर के संगठन इन सबसे अलग थे।
ये पूरे समाज ,पूरे देश की बुनियाद थे..
यह दोनों संगठन जन संगठन यानी मास ऑर्गेनाइजेशन नहीं बल्कि वर्गीय संगठन यानी क्लास ऑर्गेनाइजेशन की पहचान रखते थे..


ये इंक़लाब की बुनियाद थे..
कम्युनिस्ट पार्टी के अलावा
सिर्फ इनके झंडे का रंग लाल था..
बाकियों के सफेद इत्यादि..


इनके झंडों को ही
"हँसिया और हथौड़े" का निशान हासिल हुआ..
इनके संघर्षों ने ही इस देश दुनिया की तस्वीर बदली है
जिसके बदौलत ये विशाल मध्यवर्ग तैयार हुआ..
जिसे आज फ़र्क़ नहीं पड़ता
कि मज़दूर किसान जियें या मरें..


इन वर्गीय संगठनों की लड़ाईयां बेमिसाल हैं
बिल्कुल जैसे स्पार्टकस की कहानी ,,जो गुलामों की आज़ादी की कहानी है


इनकी ताकत देखकर ही दूसरी पोलिटिकल पार्टीज़ ने भी इस एकता को कमज़ोर करने के लिये अपने अपने हिसाब से मज़दूर और किसान संगठन बनाये..


ख़ैर अब ये सब इतिहास हुआ..
सरकार ने कोरोना की आड़ में, राज्यसभा में अल्पमत में रहते हुये और विपक्ष के बहिष्कार के बावजूद ,पूरे देश के करोड़ो लोगों की ज़िंदगी को गुलामी में धकेलने वाले तमाम ऐसे अध्यादेश इस सत्र में धड़ाधड़ पारित कर दिये जिससे इनके सारे अधिकार अब लगभग खत्म हुये।


यह अब कोरोपोरेट और पूंजीपतियों के गुलाम हैं
और रास्ता ये है कि कार्पोरेट्स और पूंजीपति भी सिमट कर चार पाँच लोगों के शिकंजे में हैं..


वो धार्मिक लाइन याद आती है..
सबका मालिक एक..
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अब जो शोषण होने जा रहा है उसमें
हर घर से आह निकलेगी..
अपराध ,अवसाद, ज़ुल्म ,आत्महत्याओं की बाढ़ आयेगी
लोग एक दूसरे के दुश्मन हो जायेंगे..
और यह सब अगले तीन सालों में आपके सामने होगा..
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आपके चैनल्स ने आपके अखबारों ने आपको बताया ही नहीं कि क्या क्या कर डाला है सरकार ने..


उन्होंने सूचना देने वाले सारे चैनल्स पर कब्ज़ा कर रखा है, अखबारों में उनके ही विज्ञापन हैं जिसका पैसा हमारे ही टैक्स से जाता है..


धूर्तता की एक झलक दिखला के मैं अपनी बात खत्म करता हूँ क्योंकि कोई और सरकार होती तो आलोचना करते करते धज्जी उड़ा देते..मगर इस बार तो हर ज़ुल्म पर जय जय कार है ..


किसानों को समझाने के लिये देश भर के अंग्रेज़ी अखबारों के फ्रंट पेज का विज्ञापन 🤣🤣


दुष्यंत कुमार का शेर सुनिये..


"उनकी ये आरज़ू कि उन्हें हम मदद करें
चाकू की पसलियों से गुजारिश तो देखिये'


Deepak Kabir