लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत हो अन्यथा यदि यह लोकतंत्र का वट बृक्ष ठूठ हो गया तो न नेता रहेंगे, न कार्यकर्ता और न हमारे जैसे लोग।

राजद नेता रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह जी नहीं रहे पर उनके आखिरी पत्र के शब्द-शब्द जीवंत बने रहेंगे...
श्रद्धांजलि/नमन रघुवंश बाबू....💐💐💐
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13 सितंबर 2020 को दिल्ली के एम्स में राजद नेता रहे रघुवंश प्रसाद सिंह जी का निधन हो गया।रघुवंश बाबू अब हमारे बीच नही हैं लेकिन उनका आखिरी पत्र समाजवादियों की नई पीढ़ी के विचारार्थ शब्दशः अपनी मौजदगी बनाये रखेगा क्योकि इस 10 सितंबर 2020 को बिना किसी को सम्बोधित किये लिखे गए 02 पेज के पत्र में बहुत ही गूढ़ व गम्भीर बातें उल्लिखित हैं।
वर्तमान दौर पर रघुवंश प्रसाद सिंह जी ने संदर्भ लिख जो दो लाइनें लिखी हैं वह अत्यंत सामयिक व मार्मिक हैं।उन्होंने लिखा है कि "राजनीति मतलब बुराई से लड़ना,धर्म मतलब अच्छाई करना।"पत्र की यह दो पंक्तियां सारे व्यक्तव्य की निचोड़ है।वर्तमान दौर में राजनीति व धर्म के मतलब बदल गए हैं जिनकी तरफ रघुवंश बाबू का इशारा है।राजनीति में आये गिरावट को वे लोकतंत्र के लिए खतरा बता रहे हैं।सच मे लोकतन्त्र खतरे में है ही जिसका आभास होने पर उन्होंने मृत्यु से महज 02 दिन पूर्व बड़ी साफगोई से लिख डाला है।
रघुवंश बाबू ने प्रायः सभी दलों को समेटते हुये जो लिखा है कि "कुछ पार्टियों द्वारा सीटों की,टिकट की खरीद-बिक्री,वोटों की खरीद-बिक्री से कार्यकताओं की हकमारी हो रही है,इससे लोकतंत्र पर ही खतरा है क्योकि लोकतंत्र मतलब वोट का राज और वोट प्रणाली ही चौपट हो जाय तो लोकतंत्र कैसे बचेगा?"रघुवंश बाबू की ये लाइनें बेहद मार्मिक हैं और नई पीढ़ी के लिए चेतावनी है कि लोकतांत्रिक मूल्यों की हिफाजत हो अन्यथा यदि यह लोकतंत्र का वट बृक्ष ठूठ हो गया तो न नेता रहेंगे, न कार्यकर्ता और न हमारे जैसे लोग।
रघुवंश बाबू का यह लिखना कि "महात्मा गांधी,बाबू जयप्रकाश नारायण, डा लोहिया,बाबा साहब और जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम और विचारधारा पर लाखों लोग रहे,कठिनाइयां सही लेकिन डगमग नही हुये।समाजवाद की जगह सामंतवाद,जातिवाद,वंशवाद,परिवारवाद,सम्प्रदाय वाद आ गया।यह सभी उतनी ही बुराई है जिसके खिलाफ समाजवाद का जन्म हुआ था।"यह अक्षरशः सत्य है कि समाजवाद के मायने हम समझने की बजाय सत्ता के लिए बेमेल मेल-जोल को तवज्जो देने लगे हैं जो भविष्य व दूरगामी राजनीति के लिए नुकसानदेह है।
रघुवंश प्रसाद सिंह जी ने अपने पत्र में लालू जी पर भी कुछ बातें कही हैं जिसे उन्होंने इधर के कुछ दिनों में महसूस किया था।उन्होंने संगठनात्मक कमजोरियों या पदों की प्राप्ति के पैमाना व पद प्राप्ति के निहितार्थ भी बताए हैं और लिखा है कि "पद हो जाने से धन कमाना और धन कमाकर ज्यादेतर लोग पद खोज रहे हैं।राजनीति की परिभाषा के अनुसार इन सभी बुराईयो से लड़ना ही होगा।" यह लाइनें दूर तक राजनीति करने वालो या दल चलाने वालों के लिए मील के पत्थर सदृश हैं।
रघुवंश प्रसाद सिंह जी ने अपनी मृत्यु से पूर्व इस पत्र में जो गूढ़ मंत्र या संदेश दिया है वह तीसरी धारा की राजनीति करने वालो के लिए पत्थर की लकीर ही है क्योकि वे लिखते हैं कि-
"सावधान! पैसे और पद से होना है गुमराह नही।
सीने पर गोली खाकर निकले मुंह से आह नही।।"
इसकी गूंज कहाँ चली गयी?"



वे अत्यंत व्यथित हो लिखते हैं कि "राजद सन्गठन को मजबूत करने के उद्देश्य से ही पार्टी में सन्गठन और संघर्ष को मजबूत करने के लिए लिखा था लेकिन पढ़ने का कष्ट भी नही किया गया।उसे ताक पर रख दिया गया।"
रघुवंश प्रसाद सिंह जी ने अपने पत्र में अपने पुराने सांगठनिक अनुभव,संघर्ष के लंबे तजुर्बे को ध्यान में रखते हुये पदों के बंटवारे,पदों के अवमूल्यन,कार्यकर्ताओ को संघर्ष की भट्ठी में झोंक कर कुण्दन बनाने की बजाय काहिल बनाने जैसे अनेक सवाल उठाए हैं जो उनके लिए नही बल्कि दल व नेतृत्व के लिए ही हितकारी होने वाली बातें हैं।विचारधारा पर बहस की बात,ट्रेनिग कैम्प चलाने की मुहिम तो दलों को वैचारिक तौर पर समृद्ध फौज ही मुहैया कराएंगी जिसकी अपेक्षा उन्होंने की है।
रघुवंश बाबू अब हमारे बीच नही है।वे राजद से त्यागपत्र भी दे चुके थे लेकिन दल के प्रति मोह भी इतना था कि दल छोड़ने व अपने नेता लालू जी द्वारा यह कहने के बाद भी कि "आप कहीं नही जा रहे हैं,समझ लीजिए।" इस दुनिया से चले भी गए पर मृत्यु से 02 दिन पूर्व अपने 02 पेज के पत्र में यह संदेश देते गए कि- दल मजबूत करिए,विचारधारा पर चलिए,राजनीति को बुराई से लड़ने का शस्त्र बनाइये,धर्म का मतलब अच्छाई करना समझिए,कार्यकर्ताओ को तवज्जो दीजिए, पदों का मतलब धन कमाना नही बल्कि परमार्थ समझिए,ब्यापारी नही बल्कि जननेता/जनसेवक पैदा करिए तभी समाजवाद व समाजवादी पुरखो की कल्पना फलीभूत होगी।
दुःखद मृत्यु पर कोटिशः नमन है रघुवंश बाबू!...
-चंद्रभूषण सिंह यादव