ये जो नीली कमीज़ वाला आदमी बैठा है रोड पर और वहीं बैठ कर खाना खा रहा है ,
जब उनसे पूछा गया कि 'सर और रोटी चाहिए, तो उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि -'नही, सबको दो ही रोटी मिल रही है , तो मैं भी दो रोटी खाऊंगा।
आप जानते हैं इनको?
आइए बताता हूं ।
यूपीए शासनकाल के दौरान नेशनल एडवाइजरी कमिटी के मेंबर थे। मनरेगा की ड्रॉफ्टिंग इन्होंने की थी। आरटीआई लागू करवाने में इनका हाथ था।
बेल्जियम में पैदा हुए, लंदन स्कूल ऑफ इकॉनिमिक्स में पढ़ाया और अब भारत में हैं। इलाहाबाद यूनीवर्सिटी के जीबी पंत सोशल साइंस में विजिटिंग प्रोफेसर रहे। इलाहाबाद में तो झूंसी से विश्वविद्यालय तक साईकिल से आते जाते थे। हिंदी में बात करते थे .
नोबल अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ डेवलपमेंट इकॉनिमी पर किताब लिख चुके हैं। दुनिया भर में सैकड़ों पेपर पब्लिश हो चुके हैं।
पिछले दिनों रांची में इनकी बाइक पुलिस वाले थाने उठा लाए। भाजपाई इनको नक्सलियों का समर्थक कहते हैं। पहले बुराई/मज़ाक और फिर बाद में नरेंद्र मोदी जिस नरेगा की तारीफ करते नहीं थकते, उसका कॉन्सेप्ट इन्हीं की देन है।
फिलहाल वे रांची यूनीवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। दिल्ली स्कूल ऑफ इकॉनिमिक्स में भी विजिटिंग प्रोफेसर हैं।
सादगी तो देखिए। गरीबों और असहाय लोगों के लिए दिल्ली में सड़क पर बैठ गए हैं।
हमेशा से ज्यां द्रे ऐसे ही रहे हैं। यह कोई पहली घटना नहीं है। राष्ट्र निर्माण के लिए जो पिछली सरकार को आयडिया दिया करता था, जिसकी दर्जनों किताबें भारतीय अर्थशास्त्र को मार्ग दिखा रही हों,
वह उन गरीब गुरबां के लिए यूं लड़ रहा है जिसे मोदी सरकार अडानी अंबानी का निवाला बना देने पर तुली हुई है।
Badal Saroj