डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन हमारे दौर में भारतीय दर्शन के जगत को मिथ्या बताने वाले आध्यात्म पक्ष के सबसे बड़े व्याख्याकार रहे हैं. उन्होंने भारतीय परम्परा के षडदर्शन में से तीन अनीश्वरवादी दर्शनों की तुलना में बाकी तीन ईश्वरवादी दर्शनों की पैरवी में पूरी काबलियत झोंक दी थी.
🔵 शासकों ने उनकी इसी योग्यता के आधार पर उनके जन्म दिन को शिक्षक दिवस के रूप के मनाने का निर्णय लिया था. वरना गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर गुरु दिवस भी मनाया जा सकता था ; मगर इसकी बजाय डॉ. राधाकृष्णन को प्रतीक बनाया गया क्यूंकि वह समय दुनियाभर में एक ऐसे नए दर्शन की बढ़त का समय था जिससे हमारा शासक वर्ग दूर ही रहना चाहता था.
🔵 उससे दार्शनिक धरातल पर बहस करने वाले, भारतीय आध्यात्मिक दर्शन की समसामयिकता पुनर्स्थापित करने वाले, सबसे बहुआयामी व्यक्तित्व उन्हें डॉ. राधाकृष्णन ही लगे.
🔵 इन नए शासकों को अब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन में भी खोट नजर आने लगी है-लिहाजा वे नया शिक्षक लेकर आये हैं.
लीजिये, झेलिये अब इन नए शिक्षक जी को नाम है भक्तों के ब्रह्मा ।
badal saroj