"भारत मे #आदिवासी यानी #इंडिजिनस नही रहते बल्कि अनु.जनजाति रहते हैं" ।

याद रखिये भारत के आदिवासियों को #युनाइटेड_नेशंस में हमारे ही देश के गैर- आदिवासी प्रतिनिधियों ने कहा था कि- "भारत मे #आदिवासी यानी #इंडिजिनस नही रहते बल्कि अनु.जनजाति रहते हैं" । इसका नुकसान यह हुआ कि आज यूनाइटेड नेशंस द्वारा भारत के आदिवासियों को आजतक #इंडिजिनस_पीपुल्स का डिक्लेअरनेशन नही प्राप्त हुआ है । इसके कारण भारत के 8 करोड़ आदिवासियों को राइट ऑफ इंडिजिनस पीपुल्स और मानवाधिकार के अधिकार भी नही प्राप्त है ।इस कारण भारत के आदिवासियों के ऊपर हो रहे अत्याचार और उत्पीड़न की आवाज विश्व समुदायों तक नही पहुँच पा रही है।



भारत के आजादी के बाद भारतीय संविधान में स्थानीय आदिवासियों को अनु. जनजाति के रूप में संवैधानिक अधिकार प्राप्त है उनके जल जंगल और जमींन से सम्बंधित भारत के संविधान के अनुच्छेद 244 के अनुसूची 6 और अनुच्छेद 244(1) के अनुसूची 5 के अनुसार विशेष संरक्षण भी प्राप्त है लेकिन इन सत्तर वर्षो के दरमियान अनुसूचीत क्षेत्रो में जातिगत और धार्मिक राजनीति के भंवरजाल में आदिवासियों (अनु. ज. जा) को जबरन वनवासी , गिरिजन आदि की संज्ञा देकर उनके मूल संविधानिक अधिकारों को ही खत्म करने का प्रयास निरंतर जारी है ।


कुछ धार्मिक एवं तथाकथित सामाजिक संगठन #वनवासी बोलकर उनके बीच धार्मिक भावनात्मक सम्बन्ध बनाकर उन्हें उनके कुछ मूलभूत सुविधाएं प्रदान करते हुए उनके मूल संस्कृति से पृथक कर जबरन धार्मिक जामा पहनाने का प्रयास किया जाता रहा है ।


ऐसे गैर आदिवासी संस्कृतियों के प्रभाव के कारण आज भारत के नई आदिवासी पीढ़ी अपनी भाषा संस्कृति और आदिवासी परम्पराओं से पृथक होते जा रहे हैं । जिससे उनके मूल पहचान की गंभीर समस्या उत्पन्न हो जाएगी । भविष्य में अगर अदिवासियों की भाषा ,परम्परा और संस्कृति नष्ट होने पर ऐसे समुदायों को गैर आदिवासी घोषित करने की साजिश लंबे काल से चल रही है ताकि आदिवासियों को उनके संरक्षित विशेष क्षेत्र जिसे शेड्यूल एरिया कहते है वहाँ से भगा दिया जाए या फिर उन क्षेत्रों को नॉन शेड्यूल एरिया घोषित कर अकूत खनिज संपदा पर एकाधिकार कर सके ।


मेरा सुझाव है की भारत के आदिवासी समुदाय के अस्तित्व को बचाने के लिए गैर आदिवासी संगठनों को आदिवासी क्षेत्रों यानी शेड्यूल एरिया से दूर रखा जाए ।अगर कोई गैर आदिवासी संगठन ऐसे क्षेत्रों में कोई भी गतिविधि जिससे स्थानीय आदिवासियों के अस्तिव पर प्रभाव डालता हो ऐसे संगठनों पर कानूनी करवाई की जाए । रुढिगत आदिवासी ग्रामसभा के अनुमति के बिना किसी भी धार्मिक गैर धार्मिक संगठनों को कार्य करने की अनुमति देने की शक्ति स्थानीय ग्रामसभा के हाथों में दी जाए ।


आने वाला वर्ष 2021 के जनवरी या फरवरी में #भारत_की_जनगणना के उन कॉलम में #आदिवासी या #Tribe का भी कॉलम रखने की मांग करता हूँ ताकि भारत के आदिवासियों ( अनु.ज. जा ) की वर्तमान संख्या ज्ञात हो सके ।


आज इतना ही ....शेष अगले पोस्ट में ।


- राजू मुर्मू
फ्रीलांस राइटर एवं आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता