भारत का भविष्य आज खंगाल रहा है कुङा ,कचरा ,करकट

।। सत्ता से लाचार हूई बचपना।।
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ये देखो कैसी है आजादी  ,जहा बचपना  बिन रहा है बोतल।
पेट की भूख मिटाने हेतू ऊठा रहा है होटल मे झूठा पत्तल।।


जब ट्रेन की सिटी सुने,लेकर दौङे वजन से ज्यादा ,दाना ,चाना।
थोड़ा सा खरीद लो भैया ,हमको है ,परिवार की भूख मिटाना।। 


भारत का भविष्य आज खंगाल रहा है कुङा ,कचरा ,करकट ।
बिमार माँ बाप की दवा के लिए, भाड़े का बेच रहा है शरबत।।


जाना था स्कूल जिसे वह बिक रहा है ,भरी खङी चौपाटी पर ।
 मालिक  है गाली देता, काम लेता है ,चढकर  उसके छाती पर।। 


कराह रही है एक ओर बचपना भूखे पेट की ज्वाला से ।
नेता जी की आॅख है खुलती, भरी  बिदेशी मशरूम की प्याला से।।


 बिकास की झूठी बैंड बजाकर छिन रहे है ,किताबों से बचपना।
सत्ता ,नही बची नैतिकता  जिससे कह सको तुम भारत मां को अपना।। 
डॉ 
अनुप कुमार सिंह 
लोसपा