कल बैंक गई थी, पासबुक प्रिंट होने में समय लग रहा था, क्योंकि लाइन में खड़े सभी लोगों की 100 से ऊपर प्रविष्ठियां बची थी। मेरे आगे जो लड़का खड़ा था, उसकी उम्र 25-30 के बीच थी। केवल वो और मैं ही ऐसे थे जिनके में दो या चार प्रविष्टियां थीं। हम खड़े खड़े इस पर बात कर रहे थे। हम दोनों का ध्यान इस पर गया कि सबसे कम प्रविष्ठियां हम लोगों की ही हैं। हम साथ ही बाहर निकले, साथ ही गाड़ी स्टार्ट की और एक ही सड़क पर बढ़ गए, आगे रेड लाइट ने हमें रोका तो वो भी बगल में अा गया। उसने पूछा
"मैडम आप जॉब करती हैं?"
मैने कहा - "नहीं, मैं स्वतंत्र पत्रकार हूं।"
उसने कहा - "मुझे कोई काम दिला सकती हैं? पहले मैं फलां होटल में काम करता था, लॉकडाउन में घाटा होने पर मालिक ने उसे बेंच दिया, कहीं नई जगह कम खोज रहा हूं।"
मैंने अफसोस के साथ कहा नहीं "मैं नहीं दिला सकती काम।"
लाइट ग्रीन हो गई और हम आगे बढ़ गए, मुझे पहली बार बेरोजगारी की भयावहता का अंदाजा हुआ, कि लोग राह चलते अजनबी लोगों से भी काम के बारे में पूछ रहे हैं।
वहां से मैं बाल कटाने गई, तो स्टाफ की लड़कियां कम थी, सिर्फ एक लड़की थी। पूछने पर बताया कि अपना खर्च भी नहीं निकल रहा, इसलिए मजबूरी में हटाना पड़ा। जबकि कटिंग का चार्ज 100 रुपए से बढ़ कर 120 रुपए हो गया था।
कुछ दिन पहले एक लड़की का फोन आया था उसकी एक साल पहले शादी हुई, ससुराल जाने पर पता चला कि पति नपुंसक है। उसने घर वालों को झिझकते हुए बताया, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। वह तैयारी करने के बहाने इलाहाबाद अा कर पढ़ने लगी। लॉकडॉउन में उसे वापस घर बुला लिया गया, और फिर ससुराल जाने का दबाव बनाने लगे। अब वह लड़की फिर से इलाहाबाद आना चाहती है, लेकिन इस बार उसे घर वाले खर्चा देने को तैयार नहीं, उसने मुझसे फोन करके पूछा क्या आप मुझे कोई सस्ता कमरा और काम दिला सकती हैं? ये मेरे जीवन का सवाल है। वह लड़की बी एस सी बी एड है, मुझे लगा ट्यूशन तो मिल ही जाना चाहिए। पता चला स्कूलों में नए टीचर रखना तो दूर छंटनी की जा रही है। Corona और लोगों की आमदनी कम होने के कारण लोग ट्यूटर भी नहीं रख रहे हैं। बिना आर्थिक आधार के वो लड़की अपनी लड़ाई कैसे लड़ेगी, मुझे भी नहीं समझ में आ रहा। ऐसी न जाने कितनी लड़कियां होंगी जो इस बीच सिर्फ इस कारण घर में घुट रही होंगी, क्योंकि सरकारी तो दूर, उनके पास कोई काम नहीं है।
मेरे घर का एक लड़का जो प्राइवेट स्कूल में पढ़ाता है, कई महीनों से पूरी तनख्वाह नहीं मिली है। दूसरा कोई काम मिल नहीं रहा।
रिश्तेदारी का एक लड़का जो 70,000 रुपए महीने वाला इंजीनियर था, निकाल दिया गया, अब 10000 रुपए में काम कर रहा है, वो भी दिल्ली में।
बेरोज़गारी की और घरों की बहुत भयानक स्थिति है। भले ही मंदिर - मस्जिद की लोरी में लोग इसकी ओर से आंख मूंद लें।
seema azad