अहिंसक समाजरचना के लिये मालिकी विसर्जन

विनोबा का विचार दर्शन, विनोबा के शब्दों में - विवेकानंद माथने.......01/09/2020


आज विश्व में जिन कारणों से अशांती है, उनमें से एक कारण है कि हर मनुष्य अपना संकुचित स्वार्थ सोचता है और अपनी मालिकी बनाकर रखता है। यह मेरा घर, मेरा खेत, मेरा धन, इस तरह मेरा मेरा करता है। इसलिये दूसरे के साथ टक्कर होती है।


मनुष्य मालिकी इसलिये चाहता है कि वह दूसरों के परिश्रम से जीना चाहता है। दूसरे श्रम करे, उसका ज्यादा से ज्यादा लाभ मुझे मिले, क्योंकि मै मालिक हूं। स्वयं शरीर श्रम टालना और दूसरों के श्रम का लाभ उठाना, यह दुनिया के दु:खों का दूसरा कारण है।


आज तक लोग अपने को संपत्ति का मालिक मानते आये। उसमें हितों का विरोध निर्माण होता है। किंतु जहां ट्रस्टीशिप का विचार आता है, वहां पूरी वैचारिक क्रांति होती है। यानी अपनी अपनी चिजों पर जो अपनी मालिकी मानते है, वह गलत है। हमारे पास जितनी भी शक्तियां है, समाज की सेवा के लिये है, व्यक्तिगत स्वार्थ साधने के लिये नही।


व्यक्तिगत स्वार्थ तो अपने स्वार्थ को समाज के चरणों में समर्पित कर देने में ही है। सारे समाज को अपना स्वार्थ अर्पण कर देना और समाज के हित के लिये सतत प्रयत्न करना ही हमारा स्वार्थ है। यही नैतिक विशेषता साम्ययोग में है।


गांधीजी की मूलभूत बात यह है कि यह सृष्टि परमेश्वर की है और यह ईश्वर का निवास है। जो अपनी वस्तु है, उसके हम मालिक नही है, किंतु ट्रस्टी है। उन्होंने संपत्तिवानों से ट्रस्टीशिप की आशा रखी थी कि हिंदुस्थान के श्रीमान अपनी संपत्ति एक ट्रस्टी के नाते उपयोग करना स्वीकार करेंगे। गांधी कहते है कि हम अपने संपत्ति के ट्रस्टी बने।


मालिकी की भावना मिट जाये और सबके लिये दया और धर्मनिष्ठा बने, तो सभी लोग बांटकर खाने की बात सोचेंगे। उससे हिंदुस्थान की दौलत जरुर बढेगी और सबकी इच्छाऐं पूरी होगी। आज आर्थिक समस्या हरएक के सामने खडी है। वह इसलिये खडी है कि लोगों ने सबके लिये सोचना छोड दिया है और हरेक अपने अपने लिये ही सोचने लगा। जहां अपनी अपनी सोची जाती है और दूसरों की परवाह ही नही की जाती, वहां लक्ष्मी बढाने के साधन हाथ में नही आते।


हिंदुस्थान मालिकी विसर्जन कर सकता है, क्योंकि यहां के लोग समझते है कि हम मालिक नही है, हम शरीर के भी मालिक नही है। संतो ने यही सिखाया है। व्यक्तिगत स्वामित्व की जरुरत नही है। जरुरत है व्यक्तिगत जिम्मेवारी की। व्यक्तिगत स्वामित्व के बगैर देश नही चलेगा, यह भासमात्र है। व्यक्तिगत संपत्ति, स्वामित्व एक बात है और व्यक्तिगत जिम्मेवारी दूसरी बात। यह फर्क ध्यान में रखना होगा।


सर्वोदय समाज के लिये, हमारे पास जो चिजे है उनके हम मालिक नही, ट्रस्टी है ऐसी भावना है। चाहे मेरा खेत, मकान या फैक्टरी हो, मै उसका मालिक नही। सर्वोदय समाज की तरफ से मै उनका संरक्षण करता हूं। इसलिये समाज को जहां मेरी जरुरत होगी, वहां मेरा हिस्सा समाज को देने के लिये मै तैयार हूं।


सर्वोदय के भी दो बिंदु है। पहला बिंदु है दान और दूसरा बिंदु है न्यास। दान से लेकर न्यास तक धर्म का पंथ है, जिस पर हम उत्तरोत्तर बढते चले जायेंगे और आखिर में मालिकी का विसर्जन कर देंगे। मनुष्य के जीवन का उद्देश है न्यास यानी समाज में लिन हो जाना। व्यक्तिगत मालिकी मिटाकर समूह की शरण लेना। ‘न्यास’ में मालिकी का पूरा विसर्जन है। मै अपने पास संग्रह रखूंगा ही नही। जो कुछ होगा गांव को दूंगा। फिर समाज की तरफ से मुझे जो मिलेगा, वह मै लूंगा। मै नारायणाश्रित बनूंगा।


ट्रस्टीशिप का इतना ही अर्थ नही है कि संपत्ति की जो मालिकी है, वह समाज के लिये, ट्रस्टी के नाते, हमारी है। इतना मानने भर से काम नही होगा। परंतु सारा धंदा किस ढंग से चले, मजदूर और मालिक दोनों को पार्टनर माना जाकर उनका अपना अपना कितना शेअर होना चाहिये, आसपास के लोगों के साथ उनका क्या संबंध होना चाहिये, मुनाफा कितना रखना आदि सारी बातें ट्रस्टीशिप में आयेंगी। यह उसका व्यापक अर्थ है।


न्यास का मतलब है कि सर्वत्र विकेंद्रित उत्पन्न होना चाहिये। किसी एक जगह सारे प्रांत या देश के लिये उत्पादन होता है, तो वह बात न्यास के विरुद्ध है। व्यक्ति की तरफ से निरंतर समाज को देते रहने को सामाजिक ज्ञान योजना कहा जायेगा, तो समाज में कही भी केंद्रित उत्पादन न होने को सामाजिक न्यास योजना कहा जायेगा।


आर्थिक समानता का बिल्कुल सादा और सरल उपाय भूदान से निकला है, क्योंकि जमीन भगवान की चिज है, नैसर्गिक वस्तु है, यह बात हर कोई समझता है। इसलिये मै यह मंत्र रटता रहता हूं कि हवा, पानी और सूरज की रोशनी के समान जमीन भी भगवान की देन है। अत: उसपर सबका अधिकार है। भूमि ईश्वर की देन है। उस पर मनुष्य का ही नही, पशु पक्षियों का भी अधिकार है। भारत का गरीब किसान भी इसे मानता है।


इस विषय में एक सादी सूचना मै करुंगा। जिसके दो बच्चे है, ऐसा समझे और तीसरा बच्चा यानी गरीब जनता। उसके लिये अपनी संपत्ति का, बुद्धि का, समय का उतना हिस्सा दे, तो सारा सवाल हल हो जाता है।


जमीन की मालिकी हम रखते है, तो उत्पादन का साधन चंद लोगों के हाथ में आ जाता है। तो बाकी लोग असंतुष्ट रहते है। असंतोष से हिंसा बढती है। भूमी की समस्या हल हुये बिना दूसरी योजनाओं से गरीबों का शोषण ही होनेवाला है।


हमे समझना चाहिये कि कुल दुनिया में जितनी जमीन है, वह सब सारी दुनियां की है। जो लोग जहां रहते है उनको सेवा करने मात्र का अधिकार है, मालिकी का कोई अधिकार नही है। दुनिया के किसी भी देश में जो जमीन पडी है वह सब दुनिया की है। जो हवा है, वह भी सारी दुनिया की है। गांधीजी ने लुई फिशर के साथ हुई चर्चा में बताया है। स्वराज के बाद जमीन का क्या होगा? तो गांधीजी ने कहा था, जमीन बांटी जायेगी, नही तो लोग कब्जा कर लेंगे।


भूदान यज्ञ की बुनियाद में यह विचार है कि सारे समाज को अपना सर्वस्व समर्पण करना व्यक्ति का कर्तव्य है। इसी को हमारे पूराने लोग कृष्णार्पण कहते थे। यानी अपनी कुल शक्ति, संपत्ति, बुद्धि, समाज की सेवा में समर्पित या कृष्णार्पित करें और भगवान कृष्ण की कृपा से समाज से जो मिले, उसे प्रसाद के तौर पर ग्रहण करें।


शहरों में फैक्टरीदान होना चाहिये। सारे कारखाने समाज के बनने चाहिये। मालिक और मजदूर, सहयोग से कारखाने चलाये। दोनों अपनी अपनी जिम्मेदारी समझे और प्रेम से काम करें। कारखाने के मालिक का लडका मजदूरों के साथ काम करें। जो मुनाफा हो उसका हिस्सा समाज के लिये दिया जाये और बाकी का मालिक मजदूर समानता से बांट ले। मै चाहता हूं कि मालिक और मजदूर का भेद मिट जाये।


समाज में किसी ने जादा परिग्रह रखा और सारा समाज भूखा है, तो हम मानते है कि उस हालत में समाज को अधिकार है कि उस व्यक्ति की प्रॉपर्टी का एक हिस्सा समाज के हित में ले लिया जाये।


सारी जायदाद सार्वजनिक मानी जानी चाहिये और उसकी व्यवस्था के बारेंमें कुछ नियम होने चाहिये। अगर ट्रस्टी इन नियमों के अनुसार जायदाद की देखभाल न करें, तो उनकी ट्रस्टीशिप रद्द कर देन का अधिकार जनता का होना चाहिये। जिनके पास संपत्ति है, वे यदी इस संपत्ति का उपयोग सार्वजनिक काम के लिये नही करते है, तो उनके पास से यह धन दौलत छीन ली जाये। मै मानता हूं कि ट्रस्टी की परिभाषा में यह बात गृहित ही है। परंतु इस छीन लेने की प्रक्रिया में हिंसा का स्थान न हो।


(विनोबा साहित्य से, शब्द विनोबाके है, विषयवस्तु स्पष्ट करने हेतु सुविधानुसार क्रमबद्ध किये है।)


विवेकानंद माथने