बकरी चराने निकली थी. पता चला कि उसने प्रथम श्रेणी में दसवीं यानि मैट्रिक की परीक्षा पास की है.

अक्सर यह भ्रम बनाया जाता है कि आदिवासी अपने बच्चों को पढ़ाने में रूचि नहीं लेते. यह अंशू है, अपनी मां पोको टोप्पो और पिता गुल्लू टोप्पो के साथ खड़ी. इससे मेरी मुलोकात एक सुबह पाठशाला से लौटते हुए हुए थी. वह बकरी चराने निकली थी. पता चला कि उसने प्रथम श्रेणी में दसवीं यानि मैट्रिक की परीक्षा पास की है. मुझे आंतरिक खुशी हुई. मैं उसके भाई सूरज से अक्सर मिला करता था उसी रस्ते. उन दोनों को तलाशते आज मैं उनके घर पहुंचा. और चमत्कृत रह गया. एक टूटा फूटा घर. कभी जमीन रही होगी, लेकिन पिछले कई वर्षों से दोनों पति पत्नी दिहाड़ी पर खटते हैं, लेकिन वे अपने पांचों बच्चों को पढ़ा लिखा रहे हैं.
सूरज बीए पार्ट वन में पढ़ता था, लेकिन एक दुर्घटना का शिकार हो गया. सर में गंभीर चोट लगी थी. उसके बाद वह पढ़ नहीं सका. उस पर काम का बोझ नहीं रहे, इसके लिए उसके जिम्मे सिर्फ एक काम है कि वह बकरियां चराये. दो बहने राजनीति शास्त्र के साथ बीए कर रही हैं. एक बीकाम. और अंशू ने दसवीं पास की. प्रथम श्रेणी से.
हम ऐसे कुछ लड़के लड़कियों को अगले सोमवार अपनी पाठशाला की तरफ से सम्मानित करेंगे. हम बच्चों को सम्मानित करेंगे, लेकिन सम्मान के हकदार उसके माता पिता भी हैं जो खुद तो अनपढ़ हैं लेकिन अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए कृतसंकल्प.


विनोद कुमार