आजादी की लड़ाई के सक्रिय योद्धा -रमापति गौड़

ये 86 साल के रमापति गौड़ है आज जिनके बाग में आम खाने गए थे। वहाँ पेड़ का पका हुआ आम और बड़हल खाये। फिर उनसे बातचीत से पता चला कि आजादी की लड़ाई में उनका सक्रिय योगदान था। गुलाम भारत के बारे में बताने लगे कि उस समय जमीदारी प्रथा थी। आम जनता का प्रत्यक्ष शोषण जमीदार करते थे। ये एक जमीदार के यहां काम करते थे और दिन भर की मजदूरी 2 मना धान कोदई ( करीब 1 किलो कोदो जो धान की एक प्रजाति है जिसको) देता था। जमीदार की तानाशाही थी उसके पास 50-60 लठैत थे जो दिन में जबरजस्ती सबके घरों के काम करने वालो को डंडे के जोर पर ले जाते थे और अपने खेतों में काम कराते थे। ये लोग जमीदार के खेत मे फसल बोने के बाद ही ये अपने खेतों में काम कर सकते थे। इन लोगों की दिनचर्या ऐसी थी कि दिनभर जमीदार के खेत में काम करते थे फिर रात को ढेकुली (धान कूटने का हस्तचालित औजार) में धान कूटते थे। फिर भी भर पेट भोजन नही मिल पाता था। कभी कभी तो तीन-तीन दिन गन्ने का रस पीकर ही गुजारा करना पड़ता था। सर्दी में रजाई नही होती थी झोपड़ी में ही अलाव जलाकर रात काटते थे। उस समय इनकी तीन बार सरकारी नौकरी लगी लेकिन जमीदार ने जबरजस्ती इन्हें नौकरी नही करने दिया क्योंकि वह अपना मजदूर नही खोना चाहता था।

चौरी- चौरा कांड में इनके गाँव के लोग भी आग लगाने गये थे, उस समय सारी पुलिस के तो हिंदुस्तानी थे लेकिन डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अंग्रेज हुआ करते थे। बात करते उनकी आंखें भर आयी क्योकि आजाद भारत मे भी आज ज्यादा कुछ नही बदला है। आज भी उस जमीदार के पास सैकड़ो एकड़ खेत है। उन्ही के अच्छे दिन आये है ये आज भी आम के बगीचे में झोपड़ी डालकर रूखा-सूखा खाकर रहते है।