WHO ने हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन के ट्रायल को फिर दी इजाजत

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने Hydroxychloroquine (HCQ) के Coronavirus Treatment के लिए इस्तेमाल के लिए ट्रायल को फिर से इजाजत दे दी है। सुरक्षा का हवाला देते हुए इसे बंद कर दिया गया था


वॉशिंगटन
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के इलाज के लिए जारी Solidarity Trial में हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन (HCQ) के ट्रायल को फिर से शुरू करने की इजाजत दे दी है। पिछले हफ्ते सुरक्षा का हवाला देते हुए इस पर रोक लगा दी गई थी। मशहूर पत्रिका द लैंसेट ने एक रिपोर्ट में कहा था कि कि क्लोरोक्वीन और HCQ से फायदा मिलने का कोई सबूत नहीं मिला है जिसके बाद WHO ने इस पर रोक लगा दी थी।


भारत ने हटाया था निर्यात से बैन
WHO के डायरेक्टर जनरल Tedros Adhanom ने कहा था कि पहले डेटा सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड HCQ के सेफ्टी डेटा की समीक्षा करेगा। बता दें कि HCQ का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है। इस दवा का उत्पादन करने वाली सबसे ज्यादा कंपनियां भारत में हैं पिछले महीने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की अपील पर भारत ने इस पर से निर्यात का बैन हटा लिया था।


भारत ने WHO को लिखा था खत
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने डब्ल्यूएचओ से शिकायत की कि उसने फैसला लेने से पहले भारतीय आर्युविज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) से बात करने की भी जहमत नहीं उठाई। सूत्रों के मुताबिक ईमेल में कहा गया, 'ICMR से भी संपर्क नहीं किया गया जो भारत में हाइड्रोक्सिक्लोरोक्वीन पर ट्रायल की अगुवाई कर रहा है।' ध्यान रहे कि आईसीएमआर के महानिदेशक (डीजी) डॉ. बलराम भार्गव ने स्पष्ट कहा है कि भारत में कोविड-19 से बचाव के मकसद से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के इस्तेमाल को लेकर अब तक के परीक्षण में किसी भी बड़े दुष्प्रभाव के सबूत नहीं मिले जबकि फायदे के संकेत जरूर मिले।


मृत्युदर बढ़ने का दावा
कई देशों में की गई स्टडीज में इसके साइड-इफेक्ट्स होने की बात सामने आई थी। द लैंसेट ने दावा किया था कि मर्कोलाइड के बिना या उसके साथ भी क्लोरोक्वीइन और HCQ के इस्तेमाल से कोविड-19 मरीजों की मृत्युदर बढ़ जाती है। पत्रिका ने कहा था कि ताजा रिसर्च करीब 15 हजार COVID-19 मरीजों पर किया गया है।

लैंसेट की स्टडी पर सवाल
हालांकि, लैंसेट की स्टडी को भी आलोचना का शिकार होना पड़ा था। कई रीसर्चर्स ने दावा किया था कि लैंसेट ने जिन लोगों पर अपनी स्टडी की वे दरअसल पहले ही गंभीर हालत में पहुंच चुके थे और HCQ के कारण उनकी मौत हुई, इसे साबित नहीं किया जा सकता। साथ ही WHO के इसके ट्रायल पर रोक के फैसले पर सवाल उठाया गया था। रीसर्चर्स का कहना था कि ट्रायल पर रोक लगने से बिना एक्सपेरिमेंट के HCQ को पूरी तरह समझा नहीं जा सकेगा।


courtsy-navbharat times