तेरी महफ़िल में लेकिन हम न होंगे !


भारतीय उपमहाद्वीप के महानतम गायकों मेंएक मेहदी हसन ने अपनी भारी, गंभीर, रूहानी आवाज़ में मोहब्बत के दर्द को जो विस्तार और गहराई दी, वह ग़ज़ल गायिकी के इतिहास की एक दुर्लभ घटना थी। शहंशाह-ए-ग़ज़ल मेहदी हसन को सुनना और महसूस करना हमेशा एक विरल अनुभव रहा है। रात की तन्हाईयों में गूंजती उनकी आवाज़ एक अलग दुनिया में ही ले जाती है जहां हाहाकार मचाती एक सरसराहट में लफ्ज़, सुर और असर एकाकार हो जाते हैं। राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में संगीतकारों के एक परिवार में जन्मे और बंटवारे के बाद बीस साल की उम्र में पाकिस्तान जा बसे मेहदी हसन भारत और पाकिस्तान की साझा संस्कृति का प्रतिनिधत्व करने वाली कुछ बेहतरीन शख्सियतों में एक थे। लता मंगेशकर ने उनकी ग़ज़लों को 'ईश्वर की आवाज़' कहा है। महान सूफ़ी गायिका आबिदा परवीन उन्हें ग़ज़ल गायिकी का शिखर कहती हैं। कहा जाता है कि प्रेम के टूटने के दर्द और अवसाद की थेरेपी लेनी हो तो मेहदी हसन के गाए गीतों और नज़्मों से बेहतर कोई जगह नहीं। मक़बूलियत का शिखर छू लेने के बाद भी उनकी एक आख़िरी तमन्ना थी लता जी के साथ ग़ज़लों का एक अलबम करने की। रिकॉर्डिंग की तमाम तैयारियों के बावजूद ज़िंदगी के कुछ आख़िरी सालों में गंभीर बीमारी की वज़ह से उनका यह सपना अधूरा रह गया। उनके आखिरी दिन काफी मुश्किल भरे थे। फेफड़े की गंभीर बीमारी की वज़ह से संगीत ने उनका साथ छोड़ दिया था और जीने की तमाम उम्मीदों ने भी। उनकी सलामती के लिए भारत और पाकिस्तान में तब एक साथ दुआओं में हाथ उठे थे। ग़ज़ल गायिकी के इस शिखर पुरूष की पुण्यतिथि (13 जून) पर खिराज़-ए-अक़ीदत, मेरे एक शेर के साथ !



गरचे दुनिया ने ग़म-ए-इश्क़ को बिस्तर न दिया
तेरी आवाज़ के पहलू में भी नींद आती है !



ध्रुव गुप्त 
सेवानिवृत आई  पी एस अधिकारी