जर्मनी एक लाज़वाब देश है,और आवादी 8 करोड़ है। एक सभ्य और सुसंस्कृत देश।
इस देश ने काण्ट,हीगेल,नीत्सेऔर कार्ल मार्क्स जैसा महान् दार्शनिक दिये है और प्लैंक और अल्वर्ट-आईन्सटाईन जैसे वैज्ञानिक भी दिए हैं।
मार्टिन लूथर जैसा महान समाज सुधारक जर्मनी का ही था और तों और गोएथे,शीलर जैसें महान् लेखक और हेईने जैसे महान कवि भी दिए हैं। संगीत की दुनिया में मोजार्द,वाख और विथोवन को कौन नहीं जानता है।
बेहतरीन विरासतों के बाद भी वहां हिटलर जैसा हत्यारा
फासिस्ट को जनता ने अपना नेता कैसे चुन लिया।आज
हम सरल भाषा में इस पर चर्चा करेंगे।
ये सच है कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी की पराजय ने देशवासियों को आत्म ग्लानि से भर दिया था।28जून
1919को फ्रांस, ब्रिटेन और अमेरिका ने बर्सायल की संधि के लिए बाध्य किया जो अनैतिक पाबंदियों से भरा पड़ा था।युद्ध का पूरा दायित्व जर्मनी पर डालकर उसके
साम्राज्य के हूं भागों को ले लिया गया और शर्त बंदी के अनुसार वह एक लाख से अधिक की सेना नहीं रख सकता था।
हिटलर का राजनीतिक आगमन जर्मनी के दुर्भाग्य से भी जुड़ा था।भाषण कला में पारंगत हिटलर ने जर्मनी की हार का कारण यहूदियों और राजनैतिक विरोधियों को सिद्ध करने में पूरी ताकत झोंक दी। कम्युनिस्टों और यहूदियों को देश के अन्दर छिपे हुए गद्दारों के रूप में सिद्ध करने में सफल रहा। जो 6,500,000,000 पौंड
धनराशि जो संधि के अनुसार ब्रिटेन और मित्र देशों को चुकाने थे वह एक राष्ट्रवादी नेता के लिए महत्वपूर्ण हथियार बन गया।
हिटलर प्रोपोगैंडा और झूठे वादों का सहारा लेकर पूरे
जर्मनी को पागल बना दिया और पागल जर्मन जनता ने
1933मे ही हिटलर को हिटलर से हेल हिटलर बना
दिया। प्रोपैगैंडा मानव जीवन और सभ्यता के महत्व पूर्ण
हथियार रहें हैं। जातियों के अतिरिक्त धार्मिक और राजनैतिक लक्ष्य प्राप्ति के लिए सदैव प्रयोग होता आया है, और हिटलर ने प्रोपैंगंडा का बेहतरीन नमूना पेश कर सत्ता पर कब्जा कर ही लिया।
प्रोपैगंडा एक ऐसी शक्तिशाली चीज़ है जिससे बुद्धिमान और अच्छे लोग भी प्रभावित हो जाते हैं,और जब तक चीज़ें समझ में आवे तब तक देश विनाश के कगार पर पहुंच जाता है। वैज्ञानिक, बुद्धिजीवी, कलाकार, संगीतकार, समाज वादी और जन वादी मूल्यों के रक्षकों के हाथ से नेतृत्व फिसल कर फासिस्टवादी नेताओं के हाथ चलीं जाती है और ठीक ऐसी ही घटना जर्मनी में हुआ था। जर्मनी एक उदाहरण हैं विश्व के अधिकांश देशों में और भारतीय राजनीति में भी प्रोपैंगंडा का महत्त्व रहा है, लुभावने नारों, वादों और अच्छे दिनों के सपने दिखा कर भाजपा ने विशाल बहुमत खड़ा कर लिया।
नहीं ये सर्वकालिक प्रभाव रखने की ताकत प्रोपैगंडा में नहीं है,जब कोई समाज या देश संकट अथवा विभीषिका के कारण अव्ववस्था फ़ैल जाती है तो वहां साम्प्रदायिक, फासिस्ट ताकतें प्रोपैगंडे द्वारा अपने हितों को साधने में प्रयोग करतीं ही है।
आज के जर्मनी में हिटलर के कारनामे घृणा और अत्याचार के साथ याद किए जाते हैं। हमें भी एक समावेशी समाज की रचना करने में प्रगतिशील जमातों और ताकतों को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।तभी
देश के भविष्य को सुरक्षित कर सकते हैं।