पूज्य और बड़ा भाई :: भारत


सन्‌ १९२४ में जब गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर चीन गये थे तब वहाँ उनके स्वागत में एक विशाल सभा हुई थी ! ल्याँग ची चाव नाम के एक आचार्य ने चीनी-जन की ओर से उनका स्वागत-अभिनन्दन पत्र पढा था !


यह अभिनंदन-पत्र विश्वभारती में प्रकशित हुआ तथा उसका हिन्दी-अनुवाद फरवरी १९२५ की सरस्वती में प्रकाशित हुआ !


यह अभिननदन-पत्र ऐतिहासिक इसलिए है कि इसमें भारत के प्रति वहाँ के लोगों का उद्गार है !


ल्याँग ची चाव ने कहा कि
""अन्धी मनुष्य-पूजा में हमारा विश्वास नहीं है ! यह ठीक है कि यहाँ हम रवीन्द्रजी के स्वागत के लिए एकत्र हुए हैं किन्तु इसका कारण यह है कि आप उस पुण्यभूमि भारत के प्रतिनिधि हैं , जो हमारे देश का पूज्य और बड़ा भाई है ! आपको खुश करने के लिए हम भारत को पूज्य और बड़ा भाई नहीं कह रहे , हमारे पास इस कथन के ऐतिहासिक-प्रमाण हैं !"
"हमारा भूगोल इस प्रकार का है कि भूमध्य सागर के चारों ओर बसी हुई मानवजातियों से हमारा संपर्क नहीं हो सका था लेकिन हमारे ईशानकोण की सीमा पर भारत जैसा सभ्य और समृद्ध देश बसा हुआ है ! इसलिए भौगोलिक-दृष्टि से हम सगे भाई हैं ! मनुष्यता के गहन प्रश्नों को हल करने की दिशा में भारत हमसे आगे था , हम उसके छोटे भाई उसके पीछे !"
"प्रकृति देवी ने हम दोनों के बीच पहाड़ और जंगलों का परदा डाला हुआ था , इसलिए हम बहुत समय तक एक-दूसरे से अनजान बने रहे थे ! सम्राट अशोक ने कुछ भिक्षु बौद्ध-मत के प्रचार के लिए हमारे देश में भेजे थे !चीन शे ह्वांग ने चीन की दीवाल बनवाई थी ! दन्तकथा है कि उस समय वे भिक्षु कैद किये गये और मार डाले गये ! लेकिन उसके बाद २४ हिन्दू विद्वान चीन आये और १८७ यात्री भारतवर्ष गये ,जिनमेम से १०५ के नाम प्रसिद्ध हैं ! कुमारजीव , बुद्धिभद्र और जीनभद्र के नाम चीन में भी प्रसिद्ध हैं ! हम दोनों देश सत्य की खोज में थे क्योंकि हमें मानवजति का उद्धार करना था !"
"भारतवर्ष ने हमें निर्विकार-स्वतन्त्रता का ज्ञान दिया ! निर्विकार-प्रेम की दीक्षा दी ! प्राणिमात्र के प्रति शुद्ध प्रेम ! बौद्ध-धर्म की सात हजार पुस्तकों का सार यही है ! बौद्ध-भिक्षु हमारे महाराज के लिए बहुत सी मूर्तियाँ , पुस्तकें और चित्र भी लेकर आये थे और हमारे देश के जो यात्री भारत गये , वे भी अनेक पुस्तकों के अनुवाद के साथ भारत की कला , साहित्य और सामाजिक-संगठन का रूप लेकर यहाँ आये ! जिसका प्रभाव हमारे संगीत , चित्रकला और भवन-निर्माण-कला पर भी हुआ ! हमारे प्राचीनतम नाट्य का नाम पूटाओ है , खोज से मालूम हुआ कि यह नाम दक्षिण भारत के बाटो नाम के स्थान की कहानी से जुड़ा हुआ है !" "अश्वघोष के द्वारा लिखित शाक्यमुनि की जीवनी और महायान-सूत्रों का हमारे साहित्य पर गहरा असर है ! अनेक भारतीय काव्यों का चीनी में अनुवाद हुआ है ! कन्फ्यूशियस और मेंशियस हमारे दार्शनिक थे किन्तु सभा एकत्र करने की प्रथा हमारे यहाँ भारत से ही आयी !"
"दुर्भाग्य से बहुत समय तक संसार में हमारी हँसी उड़ायी गयी , हमें धमकाया गया और हमारा निरादर और घृणा भी की गयी थी लेकिन हमं अपने सुकर्मों के अमरत्व पर विश्वास है , कन्फ्यूशियस की समाधि पर एक वृक्ष है और वसन्त में उस पर बारबार नवपल्लव जन्म लेते हैं , जीर्ण होने पर भी नये अंकुर ! उसी प्रकार हमें रवीन्द्र और गांधी के नश्वर शरीर में दो महान‌ आत्माओं के दर्शन हो रहे हैं !"
"आज हम उसी भाव से रवीन्द्रबाबू का स्वागत कर रहे हैं , जिस भाव से लीयांग निवासियों ने शिमोदन का और लूसन-निवासियों ने शान्ति का स्वागत किया था !"


सौजन्य : राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी