मंदसौर गोलीकांड की बरसी पर

मंदसौर के तरुण शहीद
किसानों को अर्पित ये गीत
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* पूरब में उगती तरुणाई *



फिर माटी के बेटों की
खमोशी टूटी
सूखे खेतों ने थोड़ा सा पानी माँगा
घाटे में- कर्जे में थोड़ी राहत मांगी
दिया बहुत ,थोड़ा सा अपना हिस्सा माँगा
भीख नहीं अपना हक़ माँगा


नए आधुनिक राजाओं का
माथा ठनका
राष्ट्र - राष्ट्र जप करने वाले
लोकतंत्र ने बारूदी भाषा अपनाई


खेत नहीं बेचेंगे अपने
हलधर बोले
जड़ें नहीं छोड़ेंगे अपनी
तरुवर बोले


राजनीति के अंधे विष धर
फिर फुंकारे
धन-सत्ता ने हाथों में बन्दूक उठाई


खलिहानों में -पगडंडी पर
लाश बिछी हैं नव तरुणों की
कन्धों पर किसान की बेटी उठा रही है
चारों ओर लाठियां - गोली
हिंसक नर्तन
घायल बचपन
घायल गाँवों की तरुणाई


गोलबंद हैं वृक्ष जमीं पर
तने हुए हैं
सत्ता के हिंसक तांडव से डरे नहीं हैं
जीवित सदा रहेंगे सपने
नहीं मरेंगे
नहीं मरेगी
पूरब में उगती अरुणाई .


(श्री महेंद्र नेह के गीत -संग्रह -"हम सब नीग्रो हैं " से )