लोहिया : एक आख्यान-27

लोहिया : एक आख्यान
(Distinguished People talking about Lohia)
राजनारायण जी लिखते हैं-27- डॉक्टर लोहिया की प्रतिभा चतुर्दिक थी। अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शन, भाषाविज्ञान, राजनीतिशास्त्र सभी के पंडित थे। जब वे अध्यात्मवादियों से बात करते थे तो अध्यात्मवादी उन्हें भौतिकवादी मानता था और जब भौतिकवादियों से तर्क करते थे तो भौतिकवादी उन्हें अध्यात्मवादी मानता था। लोहिया जी जड़ और चेतन, दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते थे। लोगों का चेतन प्रथम, जड़ बाद में, या जड़ प्रथम, चेतन बाद में, इस विवाद में पड़ना अनावश्यक तथा निरर्थक है। वे ऐसा समझते थे। यही कारण है कि लोहिया शुद्ध मानववादी थे। वे मानव से प्रेम करते थे। इसलिए मानव से मानव की दूरी समाप्त कर समता तथा समृद्धि का समाज बनाने के लिए निरंतर व्यग्र रहते थे।



कश्मीर में हिन्दू-मुश्लिम तनाव हो गया था। तनाव का सिलसिला एक कश्मीरी ब्राह्मण की लड़की और मुसलमान का लड़का दोनों के बीच हुई शादी से शुरू हुआ था। लड़की बालिग थी, लड़का भी बालिग था। दोनों का परस्पर प्रेम, विवाह-संबंध में परिणत हो गया। कश्मीर में कश्मीरी ब्राह्मण की लड़की और मुसलमान लड़का में एक नहीं अनेकों शादियां पहले हो चुकी थी।


मगर इस शादी का भयंकर बवंडर खड़ा किया गया। वास्तविकता तो यह थी कि कश्मीरी ब्राह्मण ने इस शादी का बहाना बनाकर साम्प्रदायिक झगड़ा खड़ा किया था। इसके पीछे शुद्ध आर्थिक संघर्ष था। अभी तक कश्मीर में सभी बड़े-बड़े सरकारी ओहदों पर तथा सरकारी नौकरियों में कश्मीरी ब्राह्मण भरे थे। अब मुसलमानों में भी आबादी के अनुपात में पढ़े-लिखे लोगों को नौकरी में जगह मिले, इस मांग को लेकर नव-चेतना आयी। इस चेतना का सीधा असर कश्मीरी ब्राह्मणों पर पड़ा और उसने आर्थिक संघर्ष को साम्प्रदायिकता का रूप दे दिया। लोहिया जी ने मुझे कश्मीर जाने और सच्ची घटना का पता लगाने का आदेश दिया था। मैं कश्मीर से लौटकर दिल्ली आया था । रपट लिखकर लोहिया जी को देने के लिए तैयार किया था। उसी अवसर पर वे 95, साउथ एवेन्यू में आ गए, बोले - 'चलो आज तुमको बाहर खाना खिलाएंगे।' मैंने कहा- 'डॉ. साहब 11 बजे हैं। तेज धूप है। खाना जल्दी ही घर बन जाएगा। होटल में क्यों चलते हैं।' वे रूक गए। करीब 3 घंटे रुके। कश्मीर से लेकर देश-विदेश और पार्टी की आंतरिक स्थिति पर व्यापक चर्चा हुई। देश और समाज के लिए वो हमेशा चिंतित रहते थे।
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