हुआ क्या है.?प्रसार भारती को

प्रसार भारती ने कहा है कि वार्षिक ग्राहकी के मद में पीटीआई को 1980 से अब तक करीब 200 करोड़ रुपए दिए गए हैं और यह बगैर किसी जिम्मेदारी के है। इस पर कहा जा सकता है कि 40 साल में 200 करोड़ यानी पांच करोड़ रुपए प्रति वर्ष औसत। शुरू में कम रहा होगा अब बढ़ गया होगा। यह पीटीआई जैसी एजेंसी के लिए बहुत ज्यादा नहीं है। हिसाब में आसानी के लिए अगर आज इसे छह करोड़ रुपए साल माना जाए तो 50 लाख रुपए महीना होता है। क्या पीटीआई प्रसार भारती को महीने भर में 50 लाख रुपए की खबर नहीं देता है? एक रिपोर्टर की औसत सैलरी 50,000 रुपए मानी जाए तो 100 रिपोर्टर की महीने भर की पूरी तनख्वाह नहीं है। वेतन भत्ते अलग होंगे। पीटीआई का जितना बड़ा नेटवर्क है और प्रसार भारती उसका सबसे बड़ा ग्राहक – तो यह मानना असंभव है कि उसे इतनी खबर नहीं आती है। आपको जरूरत न हो तो बात अलग है। और अगर जरूरत है तो देश में पीटीआई का विकल्प नहीं है



पीटीआई बोर्ड से संबंधित गलत खबर के जरिए प्रसार भारती का यह फैलाना कि पीटीआई को बहुत पैसे दिए जाते हैं गलत है और 40 साल से बगैर जिम्मेदारी के दिए गए तो उसकी अपनी गलती है। वाकई इतने पैसे बगैर जिम्मेदारी के दिए गए तो प्रसार भारती को चाहिए कि अपने निदेशक मंडल को देखे वहां पीटीआई के लोग तो नहीं बैठे हैं? प्रसार भारती का पैसा भी जनता का ही है और उसे लुटाने का हक प्रसार भारती को भी नहीं है। अगर वाकई बगैर किसी जिम्मेदारी के प्रसार भारती बोर्ड 40 साल से चल रहा है तो सबको जेल में होना चाहिए नया बोर्ड बनना चाहिए। प्रसार भारती ने मीडिया ने सूत्रों के हवाले से जो गलत खबर प्लांट कराई। उसे द टेलीग्राफ ने अनिता जोशुआ ने पहले ही धो दिया है।