सीटू :  #देश_के_मेहनतकशों_का_जाबांज_संगठन 

इसकी अनेक खासियतों में से एक यह है कि यह #नेता_की_नहीं_मजदूर_की_अपनी_यूनियन है ।
🔴 "यूनियन को नेता की नहीं मजदूर की अपनी यूनियन, मजदूर का अपना घर अपना किला बनाने" का नारा बी टी रणदिवे ने स्थापना सम्मेलन में ही पूरी वैचारिक पृष्ठभूमि के साथ रखा था । उन्होंने कहा था कि 
"यूनियनें नेताओं के नाम से जानी जाती हैं । नेता भी उसे "अपनी यूनियन" मानकर चलाते हैं । मगर सबसे ख़राब बात यह है कि मजदूर भी बड़े सहज भाव से उसे "नेता की यूनियन" मान लेता है ।" 
बी टी आर ने इस स्थिति को बदलने के लिए कामकाज की जनवादी सांगठनिक कार्यशैली पर जोर दिया ।
🔴 इस बात को और ठीक समझने के लिए भारत के मजदूर वर्ग (और पूंजीवाद की भी) की अप्राकृतिक पैदाईश को ध्यान में रखना होगा । यहां यूरोप की तरह सामन्तवाद के खात्मे के बाद कुशल कारीगरों और आर्टिजन्स के कौशल को नवोदित औद्योगिक उत्पादन में लगाकर पूँजीवाद का विकास नहीं हुआ । हमारा सर्वहारा बर्बाद किसान, दरिद्र बेदखल ग्रामीण थे । जो अकुशल मजदूर ही नहीं थे, गाँवो में उनका मानस था/है, उनकी चेतना में गाँव थे/हैं । (भारत के मजदूर के उद्भव और विकास पर तनिक विस्तार से बाद में कभी) यहां इतना भर कि किसी नेता को सर्वस्व मान लेना, कुछ लोगों को द्विज मानकर चलने की उनकी परवरिश का हिस्सा था ।
🔴 सीटू की सांगठनिक कार्यप्रणाली ने इस दोष के निर्मूलन का रास्ता बनाया। सीटू ने उसे हमेशा अपनी समझ और व्यवहार का हिस्सा बनाया, लागू करने की जिद की । नतीजा उत्साहवर्धक रहा, मजदूरो के बीच से हर स्तर के नेता निकले ।
🔴  हाल तक इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष ए के पद्मनाभन एक कारखाने के मशीनिस्ट और महासचिव इस्पात उद्योग के मजदूर हैं । एक पूर्व अध्यक्ष ई बालानंदन इलेक्ट्रीशियन रहे थे । एक महासचिव मोहम्मद अमीन जूट कारखाने के बाल मजदूर से यहां तक पहुंचे । दीपंकर मुख़र्जी इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे । आज के जे एस मजूमदार सहित कई राष्ट्रीय सचिव, उपाध्यक्ष, कोषाध्यक्ष मेडिकल रेप्रेजेंटेटिव, रेल, कोयला, जूट, कपड़ा आदि इत्यादि के मजदूर रहे । ज्यादातर राज्यो और जिलों का नेतृत्व भी आज मजदूरों के हाथों में है ।
🔴  जिद के साथ मजदूरो को नेतृत्व तक लाना, उनके नेतृत्व को निखारना सीटू में इनबिल्ट है । उसकी बनावट का हिस्सा है । यहाँ हर समझौते या फैसले को नेता नही करता । उसकी भी ऐसी प्रक्रिया है कि आम मजदूर - गैर सदस्य भी- उसका हिस्सा बनता है ।
#सफ़र_जारी_है
30 मई 1970 में अध्यक्ष चुने जाने के बाद दिए समापन भाषण में बी टी आर ने कहा था ;
🔴  "नया संगठन बना तो लिया, मगर कार्यशैली वही पुरानी वाली रही तो यह एक ऐसा अवास्तविक और अगम्भीर संघर्ष होगा जिसे शुरू ही नहीं होना चाहिए था ।"
🔴  उन्होंने सचेत किया था कि ; " संघर्ष विरोधी संशोधनवाद के साथ 'होली' खेलेंगे तो समझौतापरस्ती का रंग तुम्हारे कपड़े और शरीर से चिपकेगा ही ।"
🔴  उन्होंने कहा "नया संगठन नयी लाइन के साथ है । हरेक को अपनी चेतना बदलनी होगी, पुरानी चेतना जिद करके छोड़नी होगी । संघर्ष तभी आगे बढ़ेगा ।"
🔴 सीटू इस बात को लेकर सजग है । इस लायक संगठन बनाने के लिए प्रतिबद्ध है । 1992 में भुवनेश्वर प्रस्ताव और हाल में कोजीकोड की जनरल कौंसिल में संगठन दुरुस्ती का नया अद्यतन प्रस्ताव लेकर आयी है । सीमाओं, चूकों, छूट रहे कामों के प्रति सजग होना उन्हें आधा सुधार लेने के बराबर होता है ।
🔴  सीटू की इन सफलताओं, उसकी प्रतिष्ठा में सैंकड़ों कार्यकर्ताओं-नेताओं की कुर्बानी का, अपनी जान तक गंवाकर भी लाल झण्डा उठाये रखने का योगदान है । यह झण्डा उनका है । वे अपनी फौरी मांगों के साथ साथ शोषण की पूर्ण समाप्ति और समाजवाद की कायमी के लिए भी लड़े थे जो उनके और सीटू दोनों के लक्ष्यों में है । यह लड़ाई कुछ अतिरिक्त काम और अत्यधिक परिश्रम की मांग करती है ।
🔴  अपने संघर्षों की अर्धशती पूरी करने जा रही सीटू देश के मजदूरों के सबसे भरोसेमन्द और जुझारू संगठन के रूप में ही नहीं उभरी बल्कि सब को जोड़कर चलने वाले केंद्र के रूप में भी सामने आयी है। कुछ दशकों तक उसका एक कार्यकर्ता रहना हमारे जीवन की कमाई है। 
🔵 🔵  (मानी Manyata Saroj के लिए जिनकी 1 मई की पोस्ट और उस पर रायदिहानी आज देखी तो बी टी आर याद आ गए। )


बादल सरोज