मजदूरों को जिन हालातों में रोका जा रहा है, वहाँ केवल इन्हें अपनी मौत दिख रही है, भविष्य नहीं. 

मध्यकालीन भारत के शासकों में अफगान शासक शेरशाह सूरी को प्रशासनिक मामलों में बहुत ही काबिल माना जाता है. उन्होंने बंगाल से लेकर काबुल तक करीब 2500 किलोमीटर लंबी ग्रैंड ट्रंक रोड बनवाया था. साथ ही, निश्चित अंतराल की दूरी पर यात्रियों के ठहरने और अन्य सुविधाओं के लिए 'सराय' बनवाए. जिससे राहगीरों को किसी तरह की परेशानियों का सामना न करना पड़े. बाद के दिनों में इन्हीं सरायों के आसपास कई शहर विकसित हुए थे. 


अभी शेरशाह सूरी का जिक्र इसलिए कर रहा हूँ कि बड़े शहरों से मजदूरों के लगातार सैकड़ों किलोमीटर पैदल या साइकिल से चलने की खबर है. साथ ही, इनमें से कई की भूखे-प्यासे राह चलते मौत हो रही है. 


लेकिन सरकारों के कानों पर जूं भी नहीं रेंग रही है. अब कुछ लोग सवाल उठा सकते हैं कि इसमें सरकार की क्या गलती है? इन्हें तो रोका जा रहा है.


पहली बात जहाँ और जिन हालातों में इन्हें रोका जा रहा है, वहाँ केवल इन्हें अपनी मौत दिख रही है, भविष्य नहीं. 
दूसरी बात- सरकारें इन्हें सड़कों पर चलने से नहीं रोक पा रही है. यानी सरकार को मालूम है कि ये लोग पैदल ही निकल पड़े हैं. फिर भी इनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है. कम से कम सरकार इनके लिए 50 किलोमीटर की दूरी पर आराम करने, खाने और स्वास्थ्य सुविधाओं की व्यवस्था कर सकती है. 


इसके लिए सुलतानगंज से देवघर यात्रा (बाबा धाम) के दौरान श्रद्धालुओं के लिए जिस तरह की व्यवस्था की जाती है, वैसी व्यवस्था की जा सकती है. लेकिन, सरकारों को मजदूरों की चिंता हो तो कुछ किया जाए. 


अब एक बात तो तय है, जब तक स्थितियां सामान्य नहीं हो जाती हैं तंगहाली से जूझ रहे मजदूर शहरों में रुकने वाले तो नहीं हैं. और सरकारों पर इनका भरोसा भी खत्म हो चुका है.


प्रधानसेवक के नाम पर फंड बनाना आसान है... लेकिन जनता का केयर करने के लिए सही मायनों में शासक होना होता है. चाहे वह भारत में अफगानी शासक ही क्यों न हों.


Hemant k pandey