खोल आया हूं सारे दरवाज़े आज हर सिम्त से हवा देना 

गरचे अपनी तरह बना देना 
श़क्ल थोड़ा मुझे ज़ुदा देना 


खोल आया हूं सारे दरवाज़े
आज हर सिम्त से हवा देना 


ख़ुद को हमने सज़ा सुनाई है 
आप इल्ज़ाम बस लगा देना


रूह छू लूं तुम्हे पता न चले
इतना चुपके से रास्ता देना


ज़िंदगी भर तुम्हे बुरा न लगे 
यूं सलीके से सब भुला देना 


पहले तिनका सहेज़ना सीखो 
आशियां फिर कभी जला देना  


दिन है बाकी अभी तो सोने दो 
रात गहराए तो जगा देना


ध्रुव गुप्त