वह मुंबई वालों को खाना डिलीवर करता था. अब उसे खुद खाने के लाले पड़ गए हैं तो पैदल भाग रहा है. मुंबई से चला है, गोंडा पहुंचना है. करीब 1500 किलोमीटर. इसी गोंडा के कुछ युवक 25 दिन लगातार साइकिल चलाकर अपने घर पहुंच चुके हैं. यह मौत के मुंह से निकल आने जैसा है. देश के करोड़ों लोग मौत के मुंह में हैं, जिसे अंगरेजी में नेशनल हाईवे कहते हैं.
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र ने सबसे गरीब, सबसे निराश, सबसे असहाय और जरूरतमंद लोगों को अकेला उनके हाल पर छोड़ दिया है.
जिस सेना को फूल बरसाने के लिए कहा गया था, वही सेना बड़े गर्व के साथ सड़क पर बच्चे जन रहीं महिलाओं को उनके घर पहुंचा सकती थी. इसे देख डॉक्टर भी खुश होते, मजदूर भी खुश होते, वह मां भी खुश होती, उसका बच्चा भी खुशनसीब होता और हम आपको भी खुशी होती. लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ.
कांवरियों पर फूल बरसाने वाला दारोगा भी जाने कहां बिला गया.
दुनिया के शायद ही किसी देश में कभी ऐसा हुआ हो कि 9 माह, 8 माह की गर्भवती मांएंं सैकड़ों किलोमीटर पैदल चली होंं और फिर बच्चे को जन्म दिया हो. वह तो धन्य है ईश्वर जिसने इस हाल में भी उस मां और बच्चे को जिंदा रहने की शक्ति अता की है.
कोई साइकिल से है. कोई पैदल है. कोई आटो, मोटर साइकिल, ट्रक, कंटेनर, ट्रैक्टर या जो मिल गया, उसी से है. यह संख्या कितनी है, इस बारे में कोई कुछ नहीं जानता. उन्होंने अपनी क्षमता भर अपनी कमाई भी लुटा दी है. ट्रक में भर कर लाने वाला मालिक भी हर मजदूर से 4000 तक वसूल रहा है.
किसे कितनी तकलीफ है, यह भी कोई नहीं जानता. वे पहुंचेंगे या नहीं पहुंचेंगे, यह भी कोई नहीं जानता. उन्हें जितनी तकलीफ है, वह शायद मैं महसूस नहीं कर सकता, कर सकता हूं तो लिख नहीं सकता.
मुंबई नासिक राजमार्ग से कई रिपोर्टर जैसा बता रहे हैं, उसके हिसाब हालात भयावह हैं. थोड़ी देर पहले हमने लिखा है कि कैसे कई महिलाओं ने पैदल चलते चलते सड़क पर बच्चे जने हैं.
मुंंबई से गोंडा, गोरखपुर, बहराइच आने वाले लोग कब तक पहुंचेंगे, यह कोई नहीं जानता. पर वे चल पड़े हैं. पैदल, साइकिल से, ठेले से, टेंपो, ट्रक, ट्रैक्टर या कैसे भी. वे डेढ़ हजार, दो हजार किलोमीटर चलेंगे. वे जिस माटी से बने हैं, उस माटी को सलाम कीजिए और इस देश को सरकारों को अपनी कूवत भर लानत भेजिए.
फोटो: टेलीग्राफ में छपी है. मुंबई नासिक हाईवे की फोटो है. सरकार किसी को मरने के लिए छोड़ सकती है, लेकिन कोई अपने बूढ़े बाप को कैसे छोड़ सकता था!
@ Krishna Kant