अब प्रधानमंत्री मोदी से पूछा जाना चाहिए आज़ादी के 70 साल बाद और आपके 6 साल बाद फिर गड्ढे खोदने की जरूरत क्यों पड़ रही है?

मनरेगा पर मोदी ने पीएम बनने के बाद कहा था, "मेरी राजनैतिक सूझबूझ कहती है, मनरेगा कभी बंद मत करो... मैं ऐसी गलती कभी नहीं कर सकता, क्योंकि मनरेगा आपकी (कांग्रेस की) विफलताओं का जीता-जागता स्मारक है... आज़ादी के 60 साल बाद आपको लोगों को गड्ढे खोदने के लिए भेजना पड़ा... यह आपकी विफलताओं का स्मारक है, और मैं गाजे-बाजे के साथ इस स्मारक का ढोल पीटता रहूंगा... दुनिया को बताऊंगा, ये गड्ढे जो तुम खोद रहे हो, ये 60 सालों के पापों का परिणाम हैं... इसलिए मेरी राजनैतिक सूझबूझ पर आप शक मत कीजिए... मनरेगा रहेगा, आन-बान-शान के साथ रहेगा, और गाजे-बाजे के साथ दुनिया में बताया जाएगा. " इस बीच मनरेगा अब भी ग्रामीण भारत का आधार है. 2020-21 में मनरेगा के लिए 61500 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया है. कोरोना काल में 40 हज़ार करोड़ अतिरिक्त मनरेगा के लिए दिया गया है. अब मोदी से पूछा जाना चाहिए आज़ादी के 70 साल बाद और आपके 6 साल बाद फिर गड्ढे खोदने की जरूरत क्यों पड़ रही है?  देश को गति न अम्बानी देगा और न अडानी. देश को गति कृषि और मनरेगा से ही मिलेगा. मजदूर ही संवारेगा नए भारत को. करोड़ो लोगों को रोजगार देने का,आत्मनिर्भर बनाने का यह आईडिया आज से 15 साल पहले अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने दिया था. मोदी 6 साल में अंग्रेजी के बड़े-बड़े शब्द यूज़ कर योजनाएं बनाते हैं, लेकिन अगले साल उस योजना का पता ही नहीं चलता. क्योंकि उनके पास विजन नहीं हैं, उनके पास ज्यां द्रेज नहीं हैं.
 Vikram Singh Chauhan



  1. (तस्वीर 'द हिन्दू' से, ज्यां द्रेज पर एक महत्वपूर्ण लेख एनडीटीवी से लंबे समय तक जुड़े सीनियर पत्रकार हृदयेश जोशी सर के वाल पर भी पढ़ सकते हैं )