आसमानी_क्रांति और #तंत्र_साधना


11 फरवरी, 2020 की वह रात बहुत भयानक थी. श्मशान में चारों तरफ सन्नाटा पसरा था. 4-5 चिताएं जल रही थीं. और मुर्दों के परिजन वहीं चिता के आसपास बैठे थे. वह हजारों किलोमीटर दूर से आई थी श्मशान में तंत्र साधना करने के लिए..! वह अकेले नहीं थी, उसके 3-4 साथी और थे.


वह श्मशान के आसपास एक सुरक्षित जगह की तलाश में थी. लेकिन कोई जगह उसे मिल नहीं रही थी. तभी उसके मस्तिष्क में एक विचार कौंधा...! और उसकी आंखें चमक उठीं..! तो क्या श्मशान के ठीक सामने नदी के उस पार वह रेती पर अपना डेरा जमाएगी ? उसने सोचा कि इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है.


हवा में सिहरन थी. जलते शवों के पास बैठे लोग चिता की तपिश के सहारे ठंड से बचने की कोशिश कर रहे थे. मुर्दे के अवशेषों को जलने का उन्हें इंतजार था. वहां बैठे लोग यह जानते थे कि आधी रात के बाद श्मशान में तंत्र साधक भी टहलते रहते हैं. उनसे उलझना या कोई विवाद करना ठीक नहीं है.


उसके गुरु ने बताया था कि श्मशान में अनेक अतृप्त आत्माएं मुक्ति की तलाश में भटकती रहती हैं. साधक उन आत्माओं से ही संवाद स्थापित करने की कोशिश करते हैं. बाकी आगे का रास्ता वो आत्माएं ही दिखाती हैं. तो क्या उसने किसी आत्मा से संबंध स्थापित किया ? उसके साथियों की भूमिका क्या थी. क्या उन्होंने उसका साथ दिया..? ( क्रमश:..)
                                       #सुरेश_प्रताप