ये वक्त की आवाज़ है मिलके चलो 

जैसे आसाराम राम रहीम रामपाल जैसे लोग हिन्दू संत है l उनके बहुत सारे अनुयायी है l जो उनके लिए जान देने को तैयार रहते हैं l फिर भी इन संतों को हिंदुओं का प्रतिनिधि नहीं कहा जा सकता l इसलिए ये संत दुराचार के आरोप में जब  जेल गए तब वे ही कलंकित हुए हिन्दू धर्म नहीं l हिन्दू धर्म पर आंच नहीं आई l
 
इसी तरह तब्लीगी जमात का मौलाना साद भी मुसलमानों की एक जमात का मात्र मौलाना है प्रतिनिधि नहीं है l मौलाना की हठधर्मिता का जो उपचार सरकार को करना चाहिए वह सरकार करे l ज़रूर करे l लेकिन मौलाना के बहाने पूरी कम्युनिटी को कटघरे नहीं खड़ा करना चाहिए l यह देश के लिए ठीक नहीं है और इस संकट में तो बिल्कुल भी नही l


कोरोना जात देखता है ना धर्म l हम सब देशवासियों की जान दांव पर लगी है l हम सब यानी हिन्दू - मुस्लिम- सिख - ईसाई एक ही नाव में सवार हैं डूबेंगे तो सब डूबेंगे और बचेंगे तो सब बचेंगे l अतः वक्त की नजाकत को देखते हुए ऐसे विवादस्पद मुद्दों को ना छेडा जाए तो बेहतर है l 
मौत से जितना हिन्दू डरता है उतना मुसलमान भी डरता है l बिना वजह कोई नहीं मरना चाहता l ना किसी को मरने का शौक़ है.
बिना साथ - साथ आये ना हम बचेंगे और ना वे l ये वक्त की आवाज़ है मिलके चलो l
@ गोपाल राठी