सुपर मून की रूमानी रात !


कल सुना था कि धरती की तमाम उदासियों के बीच रूमान की कुछ गुलाबी लकीरें खींचने चांद कुछ ज्यादा ही बन-संवर कर उतरने वाला है आकाश में। शाम ढले छत पर गया तो भौंचक रह गया। ऐसा सौंदर्य एक अरसे से नहीं दिखा था चांद में। जाने किस ग्रह के ब्यूटी पार्लर से तो फेसियल और मेकअप कराकर आया था। दूर-दूर तक छतों से उसे निहारने वाले अनगिनत चेहरे स्तब्ध थे। हाथ पहुंच पाते तो चांद को छू लेने का रोमांच कल कुछ अलग ही होता। हमारी मज़बूरियों के बीच हवा ने अपने लिए अवसर तलाश लिया था। तेज भागी जा रही थी अंतरिक्ष की ओर। लगता था जैसे चांद के इस जानलेवा हुस्न को आगोश में भरकर ही लौटेगी पृथ्वी पर। दिखाई नहीं दी तो क्या, हवा की जादुई देह भी क्या कम मखमली थी ? छूकर गुज़री तो तन-मन को शीतल कर गई। इस रूमानी माहौल में तनिक सावधान न हुए होते तो पोर-पोर में आग भी लगा देती शायद। कुल मिलाकर तेज हवा और बेहद चमकीले चांद के सान्निध्य में एक क़ातिलाना रात ! छत पर खुले आकाश के नीचे चांद की तिलिस्मी रौशनी और हवा के मुलायम आग़ोश में एक रात सोना तो बनता ही था।


चांद से छत पर आंख लड़ाए
दिल के किस्से सुने-सुनाए
मखमल जैसी देह हवा की
उसपर भी दो ख़्वाब टिकाए!
(ध्रुव गुप्त)