सोचिए...। इस पृथ्वी के स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए... सोचिए।

●सीपीआई(एम) के चार बार के पूर्व लोकसभा सांसद Samik Lahiri का यह बांग्ला लेख अत्यंत मौज़ू है।●


कोरोना की मार से मौत का आंकड़ा शायद लाख की संख्या पार कर जाएगा।  दुनिया के 195 देशों में से कोई भी देश इस संक्रमण से बचा नही है। 16 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। लेकिन इसकी भयावहता यहीं नहीं रुकेगी।


संक्रमण को रोकने के लिए दुनिया भर के 121 देशों में यातायात पर प्रतिबंध है।  न केवल एक देश से दूसरे देश को जाना, बल्कि देश के भीतर का आवागमन भी इस दुनिया के लगभग हर देश में बंद है।


नतीज़तन - दुनिया भर में लाखों श्रम दिवस बर्बाद, उत्पादन लगभग ठप्प है। इक बात में इसका मतलब है- #दुनिया_थम_गई_है। यद्यपि प्रकृति के नियमों के चलते पृथ्वी की परिक्रमा व घूर्णन की गतियां तो जारी है, पर मानव निर्मित उत्पादन व वितरण की सेवाएं सभी जगह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर थम गई हैं - प्रबल पराक्रमी अमेरिका से लेकर सबको आश्चर्यचकित करने वाले चीन और कोरिया तक।


इतना वैभव- इतना पराक्रम - इतनी ताकत... सबका गुरूर मानो एक ऐसे वायरस के आक्रमण से फुस्स हो गया है, जिसे नग्न आंखों से नहीं देखा तक जा सकता है। कोरोना का अगला अध्याय भी एक मुश्किल भरा बर्फीला समय होगा। बाजार को गर्म होने में कितना समय लगेगा - बड़े बड़े अर्थशास्त्री भी हलफ उठाकर कह नहीं पा रहे।


फिर क्या हुआ है इतने सारे #परमाणु बम, #हाइड्रोजन_बम बनाकर? कहते है कि #अमेरिकी_बी_स्टील्थ_बमवर्षक आसमान के कई किलोमीटर ऊँचाई से एक आलपिन के नोक पर बम गिरा सकती है, या #रूसी_S_400_मिसाइल_डिफेंस_सिस्टम एकबार में पृथ्वी के कई चक्कर लगा सकती है, या #AK_107_राइफल जो एक पूरे टैंक को एक पल में नष्ट करने की क्षमता रखती है। इन सबसे #इंसान को #मारा जा सकता है, #पृथ्वी को #नष्ट किया जा सकता है, #लेकिन_एक_छोटा_सा_वायरस, जिसे देखा नहीं जा सकता है, #उसे_नहीं मारा जा सकता। तो #यह_सब_बनाकर_क्या_हासिल_हुआ!


स्वीडन के स्टॉकहोम में इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के एक अध्ययन में कहा गया है कि वर्ष 2018 में दुनिया में अकेले  युद्ध की तैयारी की लागत 1822 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर था। अर्थात - 13,68,13,49,99,99,999.98 रुपये। हिसाब लगाइए, उसी में लॉकडाउन के बाकी बचे दिन कट जाएंगे।


इस तरह के हथियारों के जखीरे के साथ प्रबल पराक्रमीगण असहाय होकर टकटकी लगाए ताक रहे है #फटे_कॉलर_वाली_कोट_पहने_वैज्ञानिक या रतजगा करने से थके लेकिन हार न मानने वाले #जिद्दी_डॉक्टर की ओर!


सुना है कि वैभव से सज्जित 828 मीटर ऊंचा #बुर्ज_खलीफा_वीरान पड़ा है। सुनने में आया है कि कोरोना ने #सऊदी_अरब_के_राजपरिवार_में_भी प्रवेश कर लिया है। सोने और पेट्रो डॉलर से लिपटा अहंकार मौत के डर से थरथर कांप रहा है। फोर्ब्स पत्रिका के #अति_धनवानों की सूची #में_शामिल_850_रईस ब्राज़ील के रियो डी जेनेरियो में कंट्री क्लब में रहते है। उस देश के मात्र 0.00041% लोगो को ही उस परिसर में प्रवेश का अधिकार है।  उन #अति_धनवानों_के #अभयारण्य_में_भी कोरोना प्रवेश कर गया है। खबर है कि यहां के #60_अति_धनवानों_के_शरीर_में कोविड-19 पाया गया है। हाल ही में कोरोना संक्रमण के कारण, एक अति धनवान बुजुर्ग महिला मिड़ना बंदेईरा डे मेलो का निधन हो गया। उन्हें दफनाने के समय, उनके एकमात्र बच्चे के अलावा कोई भी मौजूद नहीं था। #पैसे_के_पहाड़_पर_चढ़कर_भी_धनवान_बच_नहीं पा रहे। #अंतिम_संस्कार_तक_में_रोने_वाले_लोग_नहीं_हैं।


इतना घमंड, इतना पराक्रम, इतने हथियार, इतनी धन संपत्ति! किस काम की?


दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवा पर कुल खर्च 7.8 ट्रिलियन अमरीकी डॉलर है। इसका मतलब यह नहीं है कि यह केवल देशों या सरकारों का साझा खर्च  है। इसमें सरकारें, #मरीज_के_अपनी_जेब से व्यय, #बीमा के द्वारा भुगतान, कर्मचारियों के लिए नियोक्ताओं का व्यय, गैर सरकारी संगठनों के व्यय - सभी लागतें जुड़ी है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2019 की रिपोर्ट में सरकारों की भूमिका के बारे में कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न हैं। स्वास्थ्य देखभाल पर सरकारो या राष्ट्रों के खर्च के बीच बहुत बड़ा अंतर है। विभिन्न देशों की सरकारें कुल राष्ट्रीय उत्पादन का इस मद में 3 से 14% खर्च करती हैं। निम्न और मध्यम अर्थव्यवस्था वाले देशों में, इस क्षेत्र में खर्च कम हो रहे है। फिर सार्वजनिक स्वास्थ्य में खर्चे तो बहुत कम है। यह रिपोर्ट बताती है कि 20% सरकारी खर्च एड्स / मलेरिया / टीबी रोग से निपटने पर खर्च किया जाता है, जबकि 33% चोटों / संक्रमणों के इलाज पर खर्च किया जाता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ख़र्च लगातार घट रहा है। मेरा एक डॉक्टर मित्र जो लंबे समय से सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रहा है, वह अफसोस के साथ कहता था - लोग स्वीकार नहीं करना चाहते हैं कि वह एक डॉक्टर है।


इस रिपोर्ट में, विश्व स्वास्थ्य संगठन के निदेशक, टेड्रोस आधानम गेब्रेसियेसस ने एक महत्वपूर्ण बात उठाई। "स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च करना वास्तव में सरकारी खर्च नहीं है; यह तो गरीबी दूर करने, रोजगार सृजित करने, उत्पादकता बढ़ाने, सभी की भागीदारी के माध्यम से आर्थिक विकास के लिए और एक स्वस्थ, सुरक्षित और बेहतर दुनिया बनाने के लिए एक निवेश है।"


यह रिपोर्ट दो और महत्वपूर्ण कारकों का सारांश प्रस्तुत करती है: 
पहला, निम्न और मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था वाले देशों में स्वास्थ्य पर व्यय औसत 3-5% की वार्षिक दर से बढ़ रही है। ये व्यय सरकार, मरीजों की अपनी जेब से, बीमा, नियोक्ता के व्यय, गैर सरकारी संगठनों की संयुक्त व्यय है।


दूसरे, सरकारें इस लागत का 51% खर्च करती हैं और #मरीज_अपनी_जेब_से 35% खर्च करती हैं। इस कारण दुनिया में 10 करोड़ से अधिक लोग इलाज के दौरान गहरी गरीबी में धंसते जा रहे हैं।


निम्न और मध्यम आय वाले देशों में, सरकार प्रति व्यक्ति ₹ 442 ($ 60) का औसत खर्च स्वास्थ्य पर करती है। हमारे देश में, सरकार प्रति व्यक्ति ₹ 1112 खर्च करती है। यानी माह में 93 रुपये महीना, एक दिन में 3 रुपये। वहीं चीन प्रति व्यक्ति सालाना ₹ 45,661 स्वास्थ्य पर खर्च करता है।


समझें कि अब कोरोना के खिलाफ हमारे देश में क्या जंग होगी !!! 


हमें किस राह पर चलना चाहिए?


आपका फैसला आपकी समझदारी- दिमागदारी-तार्किकता और विवेचना पर छोड़ना ही बेहतर है। सोचिये - अच्छे से सोचिये। लॉकडाउन में तो असीम समय है।
#Samik_Lahiri
कॉम Nilotpal Basu से साभार