Social Distancing शब्द का प्रयोग मत कीजिए, इसका इतिहास डरावना है गणेश देवी और कपिल पाटील का PM मोदी को खत


दिनांक : 19/04/2020

 

सेवा में,

माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी 

प्रधानमंत्री, भारत 

 

महोदय,


समस्त विश्व कोरोना महामारी (Corona Pandemic) से बचने के लिए एक लड़ाई लड़ रहा है। आपकी अपील के बाद यह देश इस लड़ाई में किसी भी मायने में पीछे नहीं है।





 

1. इस वैश्विक महामारी से लड़ने के लिए प्रधानमंत्री के रूप में आपने देश को दो बार संबोधित किया है। अपने संबोधन में आपने सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) बनाए रखने की बार-बार अपील की। कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए लॉकडाउन के साथ लोगों को एक दूसरे के संपर्क में कम से कम आने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। लोगों को एक दूसरे से तय भौतिक दूरी बनाए रखने की ज़रूरत है ताकि कोरोना वायरस का साइकल टूटे और वह अधिक न फैलने पाए। इस अपील को सभी लोगों ने स्वीकार किया।

 

हालांकि, सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) यानी सामाजिक दूरी जैसा शब्द दुनिया के लिए भले नया हो, लेकिन भारत में यह शब्द दो हज़ार साल से अधिक अवधि से है। जातिप्रथा के नाम पर अस्पृश्यता यानी छूआआछूत का अर्थ किसी विशेष समाज से सामाजिक दूरी बनाए रखना ही रहा है। देश और मानवता को शर्मसार करने वाले इस शब्द का दो हजार साल का शर्मनाक इतिहास रहा है। इस अस्पृश्यता के खिलाफ, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने एक महान लड़ाई लड़ी। उन्होंने छूआछूत के उन्मूलन को स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनाया।भारतीय संविधान के शिल्पी भारतरत्न डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने जातिप्रथा के तीव्र विरोध की शुरुआत की। संविधान ने अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया और समाज में रहने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) जैसी कुप्रथा के दुख को स्थाई रूप से खत्म करने अनुमति दे दी। लिहाज़ा, आज भी इस शब्द के प्रयोग को खारिज करने की आवश्यकता थी।

 

ऐसे समय जब लॉकडाउन में लंबी अवधि से लोग अपने घरों में क़ैद हैं, तब सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) की नहीं, बल्कि इसके विपरीत सोशल कनेक्शन (Social Connection) की सबसे अधिक आवश्यकता है। बेशक इसके लिए फिज़िकल डिस्टेंसिंग (Physical Distancing) सबसे अधिक उपयुक्त शब्द था। दुनिया भर के कई प्रमुख सामाजिक शास्त्रियों के इस शब्द पर गहरी आपत्ति जताने के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 20 मार्च को सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) शब्द के इस्तेमाल को बंद कर दिया। इसके बाद WHO ने भौतिक दूरी के साथ सामाजिक जुड़ाव (Social connected with physical distance) नामक एक नया शब्द प्रयोग शुरू किया है। 

 

लेकिन 24 मार्च को जब आपने भारत में लॉकडाउन की घोषणा की, तब भी  आपने इस शब्द का प्रयोग किया। जिस शब्द को डॉ. बाबासाहेब अंबेडकर ने सिरे से ख़ारिज किया था, उसी शब्द का दोबारा प्रयोग आपने उसी महापुरुष की जयंती 14 अप्रैल को  उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए देश को संबोधित करते हुए किया।  

 

फिलहाल सरकारी प्रचार के विज्ञापनों, सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक/प्रिंट मीडिया के समाचारों में सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का प्रयोग धड़ल्ले से किया जा रहा है। इस शब्द के प्रयोग को तत्काल रोकने की ज़रूरत है। हमारा निवेदन है कि इस शब्द के प्रयोग को टाला जाना चाहिए और देश के प्रमुख होने के नाते आपको ही इसकी पहल करनी चाहिए।

 

फिजिकल डिस्टेंसिंग (Physical Distancing) का अर्थ है कि किसी संदिग्ध मरीज से संक्रमण दूसरे को न हो इसलिए मरीज़ या संदिग्ध और अन्य लोगों के बीच से न्यूनतम दूरी होनी चाहिए। बल्कि इसके लिए कोरोना डिस्टेंसिंग (Corona distancing) यानी कोरोना दूरी जैसे सीधे शब्द का प्रयोग करना अधिक उचित होगा। जातिप्रथा की व्यवस्था के कारण ही सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) जैसी भेदभाव वाली कुप्रथा का प्रादुर्भाव हुआ था। इसलिए, हम अपील कर रहे हैं कि मीडिया में इस शब्द का इस्तेमाल तत्काल बंद होना चाहिए।

 

सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) के संदर्भ में नॉर्थ-ईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान और सार्वजनिक नीति के प्रोफेसर डैनियल एल्ड्रिच द्वारा की गई टिप्पणियां इस प्रकार हैं:

 

वे लोग और समुदाय जो पूरी आबादी में सबसे कमज़ोर है, जिनके सामाजिक संबंध दुर्बल हैं और उनमें विश्वास और तालमेल की कमी है। ऐसे लोग 1995 में शिकागो की प्रचंड गर्मी, 2018 में कैलिफोर्निया के शिविरों में आग और 2011 में जापान के भूकंप और सुनामी जैसी आपदाओं में सबसे अधिक प्रभावित और नष्ट हुए।

 

(The people and communities that fare the worst are the ones with vulnerable populations who have weak social ties and lack trust and cohesion. Such people — as the 1995 Chicago heat wave, the 2018 Camp Fire in California and the 2011 earthquake and tsunami in Japan showed — are often the first to perish in a disaster.)

 

2. कोरोना संक्रमण के बीच सोशल कनेक्ट (Social Connect) की ज़रूरत है, जबकि दिल्ली में तबलीग़ी समाज की एक घटना के बाद कोरोना को एक धर्म विशेष से जोड़कर एक अमानवीय प्रयास किया गया जो वेदनापूर्ण और दर्दनाक है।

 

कोरोना का प्रसार किसी भी जाति, धर्म, क्षेत्र, भाषा या देश तक सीमित नहीं है। आज सभी सीमाओं को लांघकर कोरोनो ने पूरी दुनिया को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। इसलिए, उसे किसी धर्म विशेष से जोड़ना विशुद्ध रूप से अवैज्ञानिक है। यह मुद्दा फिलहाल अपने चरम पर है। क्या इसके पीछे कोई एजेंडा है? जो लोग इस देश और देशवासियों से प्यार करते हैं, वे इस तरह की प्रवृत्ति से डर रहे हैं। जिस तरह से समाचार प्रसारित किया गया और बाद में विभिन्न मीडिया के जरिए फैलाया गया, उसे आपको इस देश का संवैधानिक प्रमुख होने के नाते रोकने की पहल करने की ज़रूरत है।

 

दिल्ली में एक मणिपुरी लड़की को चीनी समझकर उस पर एक व्यक्ति ने थूक दिया। इस तरह की हरकत घातक और नफरत फैलाने वाली है। थूकने वाला किसी मरकज़ का सदस्य नहीं था। लेकिन जिस तरह से पूर्वोत्तर के लोगों को परेशान किया जा रहा है, वह बहुत ही पीड़ादायक है।

 

भविष्य की यह तस्वीर और भयावह होने वाली है। अस्पृश्यता के पूर्वाग्रह का मतलब है कि दलित समुदाय को दो हज़ार साल तक इस अपमान को सहना पड़ा और देश को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। यह छूआछूत अब मुस्लिम समुदाय और उत्तर पूर्व के लिए गंभीर ख़तरा है। देश की एकता और संविधान प्रदत्त अधिकारों का यह माखौल उड़ाता है।

 


अभी भी बहुत देरी नहीं हुई है। आपको पहल करनी चाहिए। हम अनुरोध करते हैं कि आप आगे आकर घृणा और उत्पीड़न का शिकार होने वाले नागरिकों को सुरक्षा का आश्वासन दें।


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3. कोरोना महामारी के प्रकोप से बचने के लिए भारत जैसे कम संसाधनों वाले देश के पास लॉकडाउन के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। यदि यह सत्य है, तो यह भी सत्य है कि लॉकडाउन के समय करोड़ों भारतीयों का पेट भरने के बारे में भी सोचना होगा। यदि योजना पहले बनाई गई होती, तो आज का जो अव्यवस्था है वह शायद नहीं होती। केंद्र और राज्य सरकारों पर भरोसा करने वाले लोगों की सहूलियत के लिए आज सरकार को और कदम उठाने की ज़रूरत है। सभी उद्योग बंद पड़े हैं। रोज़ी-रोटी देने वाले सारे साधन समाप्त हो गए हैं। दिहाड़ी मजदूरी करने वाले लोगों के पास चूल्हा जलाने के लिए हाथ में रुपये नहीं बचे हैं। शहरों में 8 बाई 10 की खोली में रहने वाले लोग जागने के लिए मजबूर हैं। गांव में मां, पत्नी, बच्चें इंतजार कर रहे हैं, लेकिन वे न तो घर जा सकते हैं और न ही अपने लिए खाना बना सकते हैं। इन सब मुद्दे को उठाना बहुत गैर जिम्मेदाराना नहीं होगा। सभी को दिन में कम से कम दो बार भोजन करने की ज़रूरत होती ही है। उन्हें न्यूनतम लागत के लिए उनके हाथ में नकद रुपए देने की ज़रूरत है।

 

पंधरवीं शताब्दी में, दामाजी पंत ने दुर्गादेवी के अकाल के समय खाद्य भंडार खोल दिया था। इसी तरह सरकार को भी खाद्यान्न भंडार खोल देना चाहिए। क्योंकि हमें बताया गया है कि स्टॉक पर्याप्त है। अनाज सड़ जाए, इससे बेहतर उसे लोगों तक पहुंचा देना चाहिए।

 

4. भारतीय कृषि को सूखा या भारी वर्षा जितना नुकसान नहीं पहुंचाती थी उससे कई गुना नुकसान कृषि को कोरोना महामारी से हुई है। किसान तो पूरी तरह तबाह हो गया है। उसे अपना हल को खड़ी फसल के ऊपर चलाना पड़ रहा है। फूलों और सब्जियों की पूरी खेती सड़ गई या सूख रही हैं। फल-सब्ज़ियां कौड़ियों के मोल बिक रही हैं। कृषि से जुड़े तमाम व्यवसाय भी ध्वस्त हो गए हैं। मुर्गी पालन, बकरी पालन, मछली पालन आदि क्षेत्र पर भी कोरोना ने भारी प्रहार किया है। पहले से ही बुरे दौर से गुजर रहे भारतीय किसान की इस महामारी ने कमर ही तोड़ कर रख दी है। खेत की उपज की बिक्री नहीं होने से नुकसान झेल रहे किसानों की मदद की जानी चाहिए। सिर्फ कर्ज माफी या ब्याज माफी से काम नहीं चलेगा, अब उससे ज्यादा करना होगा। क्योंकि शहर से एक बड़ा हिस्सा अपने गृहनगर लौटने वाला है। देश की अर्थ व्यवस्था जिस वर्ग पर टिकी है, सरकार की ओर से उनके लिए कुछ किया जाना चाहिए। पिछले दोनों राष्ट्रीय संबोधनों में इन सवालों की कमी महसूस की गई थी। आपसे इन मुद्दों को अगले राष्ट्रीय संबोधन में उम्मीद की जाती है।

 

5. स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों की देश में की गई बड़ी उपेक्षा और वित्तीय नियोजन के अपर्याप्त प्रावधान के कारण, आज यह देश अधिकतम टेस्ट की तुलना में लॉकडाउन पर अमल कर रहा है। फिर भी, स्वास्थ्य और शिक्षा में अधिक खर्च करना ही इसका एकमात्र समाधान है, साथ ही इन क्षेत्रों को निजीकरण से भी बचाना पड़ेगा।

 

लाखों लोग के लिए अस्वस्थता, भूख और हताशा के अलावा कोई आशा, उम्मीद नहीं दिख रही है। लाचार, बेबस और भयभीत माहौल में प्रवासियों का समूह लॉकडाउन के कारण शहरों में फंसा हुआ है। सरकार ने उन्हें शहर से घर लौटने का अवसर नहीं दिया। लोगों के सब्र के असहनीय होने की संभावना है। ऐसे में हम केवल सरकार से अपने संवैधानिक कर्तव्य को निभाने की उम्मीद कर सकते हैं।

धन्यवाद!

 

आप के भवदीय,

 

डॉ. गणेश देवी 

राष्ट्रीय अध्यक्ष, राष्ट्र सेवा दल

अध्यक्ष, पीपल्स लिंग्विस्टीक सर्वे ऑफ़ इंडिया

 

कपिल पाटील

सदस्य, महाराष्ट्र विधान परिषद

कार्यकारी ट्रस्टी, राष्ट्र सेवा दल

अतुल देशमुख 
राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्र सेवा दल

 


पत्र की कॉपी सूचना के लिए - 

सभी राज्यों के आदरणीय मुख्यमंत्रियों को विनम्रतापूर्वक सादर



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Member of Legislative Council, Maharashtra. President, Lok Bharati