राजनारायण होते तो होशंगाबाद समाजवादियों का गढ़ होता।-डॉ-सुनीलम

 


स्मृति शेष........


श्रद्धांजलि के  दो शब्द ..साथी राजनारायण को समर्पित


राजनारायण भाई को श्रद्धांजलि देनी पड़ेगी यह कभी सोचा नहीं था । राजनारायण भाई से मेरी मुलाकात इटारसी स्टेशन पर हुई थी।मैं केसला आंदोलन में भाग लेने दिल्ली से आया था, यह वह दौर था जब मेरी पी एच डी खत्म हो गई थी में आई सी एम आर का रिसर्च फेलो था।मेलबोर्न बर्न्स इंस्टीटूट से लौट आया था। पहली बार भौंरा से होकर बैतूल के बंजारी ढाल पहुंच चुका था। जब दिल्ली में रहता था तब रोज अपने गुरुदेव प्रोफेसर विनोदानंद प्रसाद सिंह जी के साथ मोटर साईकल से  मधु लिमये जी के पास शाम को जाता था।
वे कहते थे दिल्ली छोड़ो ,कहाँ जाऊं यही सोचता था ।
होशगाबाद हरि विष्णु कामथ जी का क्षेत्र था ।लेकिन राजनीतिक तौर पर समाजवादियों का सघन कार्य वहां समाप्त हो चुका था।उसी काम को आगे बढ़ाने की सोच के साथ में इटारसी केसला पहुंचा था। 
जस्टिस रामभूषण मेहरोत्रा जी के माध्यम से पता चला था कि वहां 50  एकड जमीन डॉ लोहिया के विचारों को आगे बढ़ाने के लिए ली गई है। उस केंद्र को देखने गया था। इसलिए राजनारायण लेने आये थे । कुछ महीनों बाद केसला ब्लॉक के घेराव का कार्यक्रम बना ,उसमें शामिल हुआ ,पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया ,अगले दिन नवभारत ने कई फोटो  लाठी चार्ज के छापे ,आन्दोलन को नक्सलवादियों से प्रेरित बता दिया। इस बीच मेरा आंदोलन शाहपुर के आदिवासियों के साथ शुरू हो गया। कांग्रेस अध्य्क्ष गयाप्रसाद महतो के लड़के ने आदिवासियों के साथ गुण्डागर्दी की ।मैं मुकदमों में उलझता चला गया। बैतूल के मेरे आंदोलन को भी नक्सलवाद से जोड़ दिया गया। केसला ब्लॉक के घेराव के प्रकरण में प्रकरण दर्ज हुआ ,कई वर्षों तक चला।
उसी समय सुनील भी ,आलोक और झा जी वहां केंद्र पर रहने लगे। उन्होंने भी तेजी से काम शुरू किया।
राजनारायण यह चाहते थे कि मैं भी केसला में काम करूँ।शीतल प्रसाद मिश्र जी ,प्रोफेसर विद्या जैन  दीदी और युवा साथी धनपाल पटेल से भी इस संबंध में चर्चा हुई थी। कुछ तय नहीं हो पाया।
परन्तु इस बीच मेरा सघन कार्य बैतूल में तेजी से फैलने लगा था और राजनारायण जी और साथियों का केसला क्षेत्र में तेजी से काम का विस्तार हो रहा था। इस 
कारण मैंने बैतूल में ही खुद को केंद्रित किया।
अचानक सड़क दुर्घटना में राजनारायण जी की मौत हो गई ।मेरा लिंक केसला से टूट गया ।फिर उस तरह कभी बना नहीं ,हालांकि मेरा केसला आना और सुनील भाई का बैतूल आना जाना चलता रहा ,जब तक सुनील भाई जीवित थे हमने मिलकर काम किया ,उन्होंने मुलताई गोलीचालन के बाद किसान आंदोलन को खड़ा रखने में बहुत मदद की ।परंतु राजनारायण जी के साथ जो बात शुरू हुई थी ,वह  उनके जाने के बाद फिर आगे उस तरह कभी बढ़ी ही नहीं।
राजनारायण होते तो शायद स्थिति अलग होती। वे सच्चे मायने में फक्कड़ समाजवादी थी ,बहादुर बेबाक ,यारबाज ,मित्र बनाने में माहिर।
आज राजनारायण जी याद करता हूँ तो लगता है ,आज राजनारायण जी होते तो केसला ही नहीं होशंगाबाद समाजवादियों का गढ़ होता। राजनारायण जी के साथ शुरू हुए काम को सुनील भाई ने बढ़ाया नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। केसला को समाजवादी मॉडल के तौर पर विकसित करने का काम जब अपनी चरम पर था ,तब सुनील भाई भी चले गए। आलोक जी आदिवासियों के काम करते है ,लेकिन समाजवादी  राजनीति में उनकी रूचि नहीं है। झा जी का मालूम नहीं वे कहां हैं ? फागराम राम भाई खूंटा गाड़े हुए है।इसलिये उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है। स्मिता जी भी लगातार समय देती है। साथी राजनारायण और साथी सुनील के अधूरे काम को आगे बढ़ाने के लिए जो भी संभव है , मन मे करने की  बहुत इक्षा है । जबभी केसला के  साथी मिलते हैं ,उनसे कहता हूं। परन्तु बात कुछ बन नहीं पाई है। उम्मीद बाकी है,पुण्यतिथि के अवसर पर बस इतना ही कि 
साथी राजनारायण  तेरे सपनो को मंजिल तक पहुंचाएंगे।
किसान मजदूर आदिवासी एकता जिन्दाबाद ,समाजवाद जिन्दाबाद!