पालघर अचानक नहीं होता  --

हर हत्या , चाहे वह एक व्यक्ति द्वारा की जाए या उन्मादी समूह द्वारा , निंदनीय है । मैं पालघर महाराष्ट्र में  2  साधुओं तथा उनके वाहन के ड्राइवर और दो अन्य लोगों की हत्या की घोर निंदा करता हूं । इन हत्याओं के वीडियो को संबित पात्रा द्वारा वायरल किए जाने तथा गोदी मीडिया द्वारा इस पर अपने ढंग से व्याख्या किये जाने से हैरान हूं अतः न चाह कर भी , विवश होकर यह आलेख लिख रहा हूं । गनीमत यह है कि इस केस में आरोपी कोई मुस्लिम नहीं है , नहीं तो क्या होता, इसकी कल्पना ही भयावह है । मैं कुछ साल पहले ओडिसा में एक ईसाई पादरी को उसके परिवार सहित घर में आग लगाकर जला कर मारने की नृशंस घटना का जिक्र नहीं करूंगा जिस का एक आरोपी आज केन्द्र सरकार में मंत्री है । मैं देशभर में अनेक घटनाओं में कथित गौरक्षकों द्वारा कथित गौ तस्करों की की मौब लिंचिग का जिक्र भी नहीं करूंगा । मैं केवल उत्तर प्रदेश की उस घटना का जिक्र करूंगा , जिसमें उन्मादी भीड़ ने वर्दी पहने हुए अपने ही धर्म के एक बेकसूर पुलिस इंस्पेक्टर की मार मार कर नृशंस हत्या कर दी थी और जय श्री राम के नारे लगा कर भगवान राम को भी पाप का भागीदार बना रहे थे । जब हत्यारे जमानत पर छूटे तो हत्या के आरोपियों का इन्हीं नारों के साथ स्वागत किया गया , मानो भगवान राम लंका पर विजय प्राप्त कर लौटे हों । तब संवित पात्रा और गोदी मीडिया कहां छुपा था ?  आज महाराष्ट्र  पुलिस को साधुओं की हत्या के लिए लचर बता रहे हैं , क्या तब उत्तर प्रदेश की पुलिस चुस्त थी जो उनका ही एक  इंस्पेक्टर इस तरह मारा गया ? मैं उद्धव ठाकरे का कभी समर्थक नहीं रहा और न  आज भी हूं किन्तु मेरा कहना है कि जो उद्धव ठाकरे की आलोचना कर रहे हैं उनमें योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने का भी  साहस होना चाहिए । जयहिंद ।


Akhilendu Arjeria 
सेवानिवृत IAS अधिकारी