निजामुद्दीन : तब्लीगी जमात 

तबलीगी जमात की गैर-ज़िम्मेराना हरकत के खिलाफ कार्रवाई के नाम पर मीडिया ने  साम्प्रदायिकता का जहर फैलाना शुरू कर दिया है।  तबलीग को ऐसे  समय में बाहर  से लोगों को बुलाने देना और सम्मलेन करने देना सरकारी नाकामी का उदाहरण है।  एक धार्मिक संस्था से मेडिकल समझदारी  की उम्मीद करना बेकार था।  तबलीग ने पाकिस्तान में भी ११ मार्च से पांच दिनों का इज्तिमा (सम्मलेन ) रखा था। लेकिन सरकारी दबाव में उसे दो दिनों में खत्म करना पड़ा।  इसमें ढाई लाख लोग लाहौर के पास जमा हुए थे।   इसके बाद सिंध और दुसरे इलाकों में पहुंचे जमात के लोग कोरोना पोजीटिव पाए गए जिसमे एक विदेशी नागरिक भी था।  लाहौर इज्तिमा में भाग लेने वाला एक फिलिस्तीनी गाज़ा में पॉजिटिव पाया गया। 
 मलेसिया में कोरोना के विस्तार का कारण भी एक धार्मिक सम्मेलन था और साउथ कोरिया में भी एक चर्च इसका जिम्मेदार  साबित हुआ।  उस पर मुकदमा भी चल रहा है।   जमात की तरह इस चर्च ने भी जानकारी छिपाई ।  इसी तरह ब्राज़ील में एक पादरी ने कोरोना को  शैतान की और से लोगों को डराने की कोशिश बताया और अदालत से चर्च  खुले रखने की इजाजत भी ले ली है।   
 जर्मनी और  इटली की यात्रा से लौटे दो ग्रंथियों, जिनकी मौत हो गयी है,  को पंजाब में तेजी से रोग फ़ैलनेवालों के रूप में गिना जा रहा है।  उन्होंने  यात्रा के बाद बाहर  से आये लोगों के लिए जारी इस निर्देश का पालन नहीं किया कि   उन्हें १४ दिन तक अपने को लोगों से दूर रखना है।
मुल्ला, पंडितों और पादरियों का मेडिकल साइंस या विज्ञान के निर्देशों का उल्लंघन करने का नतीजा है कि  भारत में कई धार्मिक स्थल २० मार्च तक खुले रहे।  इनमें से कई जगहों पर लोग हज़ारों की संख्या में आते हैं और देश के अलगअलग राज्यों और विदेशों तक से आते हैं।  कहने का मतलब यह है कि यह जानते हुए कि अन्धविश्वास किसी एक धर्म तक सीमित नहीं है और तबलीग़ के मौलाना, गुरूद्वारे के ग्रंथी या चर्च  के पादरी ने किसी और धर्म मानने वाले की जान लेने के लिए नहीं बल्कि अपने अन्धविश्वास के कारण इस तरह की अज्ञानता की है, चैनल और मीडियकर्मियों ने सांप्रदायिक राजनीती करनेवालों का साथ दिया और तबलीग की  हरकतों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की।  भारत या पाकिस्तान दोनों जगह तबलीग को  इसके कार्यक्रम से रोकने की कोई गंभीर कोशिश नहीं हुई और न केवल ये दोनों  देश बल्कि दूर बसे फिलिस्तीन जैसे देश को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।  देश के मीडिया ने फिर से साबित किया कि वह पतन की हद  पार कर चुका है।


@ Anil Sinha