मईदिवस_की_पूर्वबेला में

#मईदिवस_की_पूर्वबेला में
 
#आठ_घंटे_का_काम ! 
हाँ यही नारा था! यही मांग थी जिसे लेकर 1886 के ऐतिहासिक 1 मई को संपूर्ण अमेरिका के 13000 व्यवसायिक प्रतिष्ठानों से 300,000 तीन लाख मज़दूर अपनी एकजुटता का इज़हार करते सड़क पर उतरे थे।  इनमें  40,000 मज़दूर सिर्फ़ शिकागो शहर में अपने काम छोड़कर सड़कों, गलियों, चौराहों पर अपने जंगजू तेवर के साथ चल रहे थे  ।  
उनके हौसले बुलंद थे। "आठ घंटे का आंदोलन" उनके पाँच दशक के संघर्षों की गाथा का चरम था । 
1 मई की एकजुटता से उत्साहित मज़दूर वर्ग ने अगले कार्य दिवस 3 मई को लगभग 1 लाख की संख्या में (2 मई के रविवार की छुट्टी थी) "  की मांग पर और जोर डालने के लिए शिकागो में फिर जुलुस निकाला । वे अपनी मांगों की तख्ती लेकर चल रहे थे "आठ घंटे काम,आठ घंटे आराम और आठ घण्टे सामाजिक काम।
3 मई को पुलिस से मुठभेड़ होती है और 2 लोग मारे जाते हैं। 
मज़दूरों में स्वाभावतः असंतोष बढ़ जाता है। इन शहीद मज़दूरों की याद में और पुलिस मुठभेड़ के विरोध में 4 मई को जबरदस्त प्रतिरोध देखने को मिलता है । शिकागो के समूचे औद्योगिक और व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के लाखों की संख्या में मज़दूर काम को ठप्प कर शाम को हे मार्केट स्क्वायर पर इकट्ठे होते हैं। मज़दूरों की इस अभूतपूर्व एकजुटता को देखकर पूंजीपतियों के बीच हड़कंप मचता है। उनके सिहरन से उनकी राज्यसत्ता में भी दोलन होता है। पुलिस भेजी जाती है। मज़दूरों का शांतिपूर्ण जलसा चल रहा होता है। स्पाइस, उनके प्रिय नेता भाषा समाप्त कर चुके थे। पार्सन्स, निब्ब आदि पहले बोल चुके थे। सभा शांति पूर्ण समापन पर थी । इसी बीच 176 सिपाहियों के साथ पुलिस की दखल शुरू होती है । एक बम फूटता है। फिर पुलिस की गोलियों की अंधाधुंध बौछारें! 
आठ पुलिस समेत सैकड़ों मज़दूर उस रक्तरंजित हमले में मारे जाते हैं। सैकड़ों ज़ख़्मी होते हैं। भारत में जालियाँवाला बाग और 1905 में पेत्रोग्राद के "ख़ूनी रविवार" में यही कहानी दुहराती मिलती है।
फिर दमन का अगला पाखंड शुरू होता है। आठ मज़दूर नेताओं के, जो "आठ घंटे एसोसिएशन " के लोकप्रिय नेता थे, ऊपर मुक़दमे का नाटकीय अध्याय शुरू होता है। अल्बर्ट पार्सन्स, ऑगस्ट स्पाइस, सैम्युअल फ़िल्डेन, ऑस्कर निब्ब, माइकल श्वाब, जॉर्ज एंगल, अडोल्फ फ़िशर और लुई लिंग  गिरफ्तार होते हैं, उनपर क़त्ल का मुक़दमा चलता है उसे जज और जूरी की अदालत में जिसके बारे में ख़बरें उस समय के अधिकांश तटस्थ अख़बारों की सुर्खियां बनती है कि जज पक्षपाती है और जूरी का गठन बड़े व्यवसायिक घरानों से की गई है जिससे यह पूरा न्याय का दिखावा एक मज़ाक़ बना गया है।
बम किसने कहाँ से फोड़ा इसका कुछ भी पता पुलिस को नहीं लगती है और न अदालत में उसका कोई सबूत अथवा गवाह पेश होता है। यहाँ तक कि जिन आठ अभियुक्तों में से सिर्फ़ तीन का ही साक्ष्य उपस्थित किया जाता है कि वे हे मार्केट की सभा में उपस्थित थे।  साक्ष्य के तौर पर एक पोस्टर पेश किया जाता है जिसे 3 मई के वारदात के बाद 4 मई की सभा के लिए चिपकाया गया जिसमें आखिर में कहीं लिखा था- "For Revenge!"  इसके अतिरिक्त,  अभियुक्तों  के विभिन्न अवसरों पर दिये गये भाषण, पत्र पत्रिकाओं,अख़बारों में उनके लेख, बयान आदि को आधार बनाया जाता है जिसपर अदालत और जूरी का फैसला आता है ; अभियुक्तों में से पांच क्रांतिकारी नेताओं पार्सन्स, एंगेल, स्पाइस  फ़िशर और लुई लिंग को फांसी की सज़ा सुनाई जाती है , शेष तीन श्वाब, निब्बे और फ़िल्डेन को कारावास का दंड दिया जाता है। स्वतंत्रता, ख़ासकर न्याय स्वतंत्रता की दुहाई देने वाला  अमरीका के संविधान और राज्य का यह न्याय पाखंड ब्रिटिश न्याय के उस न्यायपाखंड से मिलता जुलता है जो भारत में स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों और मज़दूर नेताओं के विरुद्ध लाहौर , कानपुर, पेशावर तथा मेरठ षड्यंत्र केस तथा इंग्लैंड के साको-वेनज़ेती  केस की याद दिलाता है। जिस तरह भगतसिंह और उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव की फांसी के बाद  उनकी तस्वीरें हिंदुस्तान के घर घर में छा गयी थी उसी तरह पार्सन्स, स्पाइस निब्बे आदि के चित्र न सिर्फ़ शिकागो और अमेरिका की मज़दूर बस्तियों में बल्कि संभ्रांत न्यायप्रिय लोगों के घरों में भी लटकाये जाने लगेलगे। । 
इस मुक़दमे की अपील दर अपील की जाती है। पूरी दुनिया के मज़दूर आंदोलन, प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, समाजवादी चिंतकों व न्यायप्रिय सिद्धांतकारों  की अपील के बावज़ूद  चार नेताओं पार्सन्स, फ़िशर , स्पाइस और एंगेल को 11 नवंबर 18870को फांसी दे दी  जाती है  और पांचवे लुई लिंग्ग ने एक रात पहले अपने मुंह मे किसी पदार्थ को रखकर विस्फोट से ख़ुदकुशी कर लेता है।। 
पूरे अमेरिका के मज़दूर वर्ग और न्याय प्रिय समाज में इस फैसले पर एक आक्रोश छा जाता है । इसे अमेरिका के न्याय-इतिहस का सबसे ग़लत फैसला माना जाता  है हालांकि अमरीका में मुख्यधारा के अख़बारों ने पुलिस द्वारा जारी कहानी को फैलाने पर जोर दिया। आंदोलनकारियों को अराजकतावादी, विदेशी एजेंट यहाँ तक कि नस्लीय द्वेष से प्रेरित शब्दों का  प्रयोग किया जाता है। स्लाविक, यहूदी, जिप्सी, काला , लाल आतंकी इत्यादि संज्ञाओं व विशेषणों से आंदोलन और हिंसा को नवाज़ा जाता है जैसा कि आजकल भी धड़ल्ले से मज़दूरों के एकजुट आंदोलन को तोड़ने तथा बदनाम करने के लिए शासकीय तबक़ा इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करता है। 
 फिर भी, जब फांसी के फंदे पर झूल जाने के बाद इन शहीदों के शव बाहर आते हैं तो लाखों की संख्या में लोग इनके अंतिम सफ़र में शामिल होते हैं। यह भगतसिंह एवं उनके साथियों की शहादत या यतीन दास की अनशन में मृत्यु वरण करने के बाद उनके अंतिम संस्कार में लोगों की उमड़ी भीड़ की याद दिलाता है। 
 छ साल के बाद  गवर्नर जॉन पीटर द्वारा निब्बे, फ़िल्डेन और श्वाब को दोषमुक्त क़रार देते हुए पूरी न्याय प्रक्रिया को ग़लत दे दिया जाता है जैसे विज़नेती के मामले में या उसके पहले ही डॉरचेस्टर के मामले में इंग्लैंड की सरकार आत्मस्वीकार करती है। 
हेय मार्केट के शहीदों की याद में 1893  में वाल्ढहाइम सिमेट्री के पास एक स्मारक का निर्माण किया गया 
इसके पहले पूंजीपतियों ने अपने राज्य के सहयोग से 1889 में  हेय मार्केट की हिंसा में मारे गए पुलिसकर्मियों की याद में  हेय मार्केट में ही एक स्मारक तैयार किया था जिसे अमेरिकी जनता ने कभी स्वीकार नहीं किया। इसे हम 1969-70 में छात्रों की उस कार्रवाई में देख सकते हैं जिसके द्वारा उन्होंने पुलिसकर्मियों की स्मृति में हेय मार्केट के स्मारक को गिरा दिया। 
 हेय मार्केट के शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं गया। यह सही है कि परिवर्तनकामी शक्तियों के साथ प्रतिक्रांतिकारी शक्तियां भी उससे बचाव में या उसपर हमला करने में उससे कम सक्रिय नहीं रहती। अमेरिका का पूरा पूंजीपति वर्ग मज़दूरों के इस क्रांतिकारी क़दम से सचेत था इसलिए उसने मुक़दमे के दौरान न्याय और क़ानून की बुनियाद पर नहीं अभियुक्तों के राजनीतिक कार्यवाहियों को लक्ष्य कर फ़ैसला दिया था और बाद में मज़दूरों के किसी भी प्रकार के आंदोलन की भ्रूणहत्या करने की तैयारी कर ली। 
       लेकिन, फिर भी, इन शहादतों ने शीघ्र ही दुनिया भर के मज़दूर वर्ग के लिए ऐतिहासिक मील स्तंभ बन गया। अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर संगठन का प्रथम प्रयोग प्रथम इंटरनेशनल,जो अकाल मृत्यु का शिकार हो गया था वह फ्रांस की राज्यक्रांति की सौवीं वर्षगांठ पर फिर से नये अवतार में सेकेंड इंटरनेशनल के रूप में   अवतरित हुआ। निस्संदेह यह अमेरिका के मज़दूर आंदोलन और उसके हेय मार्केट शहीदों की उस प्रेरणा का फल था जो उसकी प्रत्येक बरसी पर मज़दूर वर्ग 1 मई को याद करने लगे।


 सेकेंड इंटरनेशनल ने फ़ैसला लिया कि 1 मई को पूरी दुनिया में जहाँ भी संभव हो मज़दूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के विरुद्ध अपने कार्यस्थल पर काम को रोककर "आठ घंटे काम, आठ घंटे आराम, आठ घंटे विश्राम " के आंदोलन तक ही नहीं बल्कि अपने राजनीतिक एजेंडे को सामने लाने का काम करेगा।


तब से यह मई दिवस अपनी कई विद्रुपताओं, विचलनों , अपहरणों के बीच आज भी मज़दूर वर्ग के भीतर एक ऐतिहासिक चेतना का विंब लेकर हर साल उपस्थित होता है। 


                                                   #क्रमशः


#मई_दिवस_के_दिन_ऐतिहासिक़_और_विचारधारत्मक_महत्व_के_मार्क्स_एंगेल्स_लेनिन_रोज़ा_लग्ज़मबर्ग_की_टिप्पणी


Bhagwan Prasad Sinha