मेरी नानी चीन में अकेले रहती है :
जिसकी मां चीनी हो उसके लिए भारत में पलना-बढ़ना आसान नहीं होता. मैं जब छोटी थी तो लोग तब भी नस्लभेद करते, भद्दे कमेंट करते. अब ट्विटर पर हमें चायना का माल और चिंकी कहा जाता है. लेकिन इस तरह ट्रोल और अपमानित किए जाने में मेरे साथ एक और चीज जुड़ गयी है. ट्विटर पर अब मुझे लोग हाफ कोरोना कहने लगे हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर ने मुझे अपमानित करने के लिए एक और शब्द दे दिया. लेकिन मैं उतनी ही भारतीय हूं जितना कि कोई और. मैं अपने इस देश भारत के लिए उतना ही सबकुछ करती हूं जितना कि कोई और. भारत के साथ हमारा रक्त-बीज का नाता है.
पहले मेरे नाना भारत आए. उन्होंने टैगोर के साथ पढ़ाई की. नाना ने शांति और अहिंसा को लेकर जिस तरह काम किया, महात्मा गांधी ने उन्हें शांतिदूत की उपाधि दी. वो सिंगापुर-चाइनिज समाचारपत्र के प्रधान संपादक थे. वो महात्मा गांधी की आत्मकथा का अनुवाद करना चाहते थे. इसी सिलसिले में मेरी मां उनकी मदद करने भारत आयी. मेरे नाना गुजर गए. वर्धा में उनकी मौत हुई और उनकी कब्र कस्तूरबा मेडिकल हॉस्पिटल में है.
मेरी मां बहुत मेहनती है. बहुत काम करती है. सुबह आठ बजे से शाम के छह बजे तक लगातार लगी रहती है. चीन के लोग बहुत काम करते हैं. जब वो चीन में थी तो अच्छा खाना, पीना ये सब उसके दिमाग में होता लेकिन अब यह सब बहुत पीछे छूट गया है. परिवार के कुछ लोग इस बात से खुश नहीं थे कि मैं लड़का न होकर, लड़की पैदा हुई. लेकिन मेरे माता-पिता ने छोटी से छोटी बातों का ख्याल रखा और बेहतरीन परवरिश दी. मेरी नानी चीन में अकेली रहती है. उन्हें हमारे साथ रहने पर तमाम तरह की सुविधाएं मिल जाएंगी लेकिन वो चीन छोड़ना नहीं चाहतीं.
आप मुझे चीन और भारत को लेकर किसी तरह की स्टीरियोटाइप बात करने कहेंगे तो मैं ये नहीं सक सकती. मैं दोनों देशों के अनुभव से गुजरती हूं और पाती हूं कि ऐसा करने का हमें हक ही नहीं है. मैं सबों के साथ बराबरी से पेश आती हूं. आप मेरे खेल पर सवाल करेंगे मैं स्वीकार कर लूंगी लेकिन आप मेरी देशभक्ति पर सवाल नहीं कर सकते. मैं इस देश के साथ जिस तरह से खड़ी रहती हूं, उतना तो मुझे ट्रोल करनेवाले राष्ट्रगान के वक्त भी नहीं खड़े होते होंगे.
मैं दूसरा का सम्मान देने का मतलब समझती हूं . मैं जानती हूं कि इंसान की जिंदगी में इंसानियत का क्या मतलब है. सारी बातों से परे मैं एक भारतीय हूं और इतना जाननती हूं कि कोविड- 19 से लड़ना, मुकाबला करना हम सबकी साझा जिम्मेदारी है.
6 अप्रैल को विश्व बैडमिंटन चैंपियन और कॉमनवेल्थ गेम विजेता ज्वाला गुट्टा ने बहुत ही सादे लफ़्जों में दि इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा. ये लेख अपनी सादगी के बावजूद भीतर तक छील देनेवाला है. गुट्टा आज जहां खड़ी है, वहां तक पहुंचना तो छोड़िए, उस रास्ते पर दस कदम चलना भी किसी सामान्य के बूते की बात नहीं. लेकिन ट्विटर पर लोग उन्हें ट्रोल करते हैं. भद्दे-भद्दे कमेंट करते हैं.
गुट्टा का ये लेख उस हर भारतीय के लिए एक नज़ीर है जिससे गुज़रते हुए वो महसूस कर सकेंगे कि कोई अपने देश से तमाम तरह की विसंगतियों के बीच कितनी शिद्दत से प्यार करता है. वो उसका सिर ऊंचा करने के लिए जी-जान से जुटा रहता है. गुट्टा के लेख में कहीं भी कोई शिकायत नहीं है. बस अफसोस है कि इतने खूबसूरत देश में रहकर भी कुछ लोग कैसा व्यवहार करते हैं ? उदास मौसम में इस लेख को पूरा पढ़ जाइए, अच्छा महसूस करेंगे. व्यक्तिगत तौर पर मुझे इस देश में पैदा होने और ज्वाला गुट्टा के इस देश की होने पर गर्व है.
ज्वाला गुट्टा
लिंकः https://indianexpress.com/…/coronavirus-outbreak-north-eas…/
साभार: Vineet kumar
http://www.janadesh.in/home/newsdetail/734