हीरू ओनेडा . जापान की इम्पीरियल आर्मी का सिपाही, जिसने जिंदगी के 30 साल दूसरा विश्वयुद्ध लड़ते हुए गुजार दिए.

#द्वितीय_विश्वयुद्ध
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जंग खत्म हो गई, और मोर्चे पर था #हीरू_ओनेडा
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वह अपनी मौत को ही उद्देश्य बनाकर लड़ता रहा
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ये हीरू ओनेडा हैं. जापान की इम्पीरियल आर्मी का सिपाही, जिसने जिंदगी के 30 साल दूसरा विश्वयुद्ध लड़ते हुए गुजार दिए.


नागासाकी व हिरोशिमा पर अमेरिका ने बम गिराकर जापान की कमर तोड़ दी थी. जपान ने आत्मसमर्पण कर दिया था लेकिन हीरू ओनेडा मोर्चे पर डटा था.


दूसरे विश्वयुद्ध के पूर्व जापान में राजशाही, वस्तुतः एक फासिस्ट किस्म के सिस्टम पर शासन करती थी. जनता को देश के लिए मरने और मारने की शिक्षा मिली थी. #कामिकाजे एक प्रथा है, जिसमें बचने का कोई मार्ग न मिलने पर समुराई, या कहिये फौजी अपनी मौत को उद्देश्य बनाकर लड़ता है.


सुदूर समुद्र में जापानी बमवर्षक बम गिराने के बाद, अपना प्लेन भी अमेरिकी नेवल शिप से भिड़ा देते थे, क्योंकि प्लेन में वापस एयरस्ट्रिप तक जाने का तेल नहीं होता था. इन तरीकों से जापान, जर्मनी के सरेंडर के बाद भी युद्ध कुछ महीने खींच सका और अंत मे एटम बम से दो शहरों के एल्हिनेशन के बाद ही सरेन्डर को तैयार हुआ.


तो हीरू ओनेडा ने 1944 में आर्मी जॉइन की. इन्हें फिलीपींस के एक द्वीप पर अमरीकी हवाई अड्डे पर कब्जा करना था. दल अपने उद्देश्य में असफल रहा. अमरीकी फ़ौज उतरी, और दल के सदस्य मारे गए. हीरू और उनके तीन साथी पहाड़ों में जा छुपे.


कुछ दिनों बाद हवाई जहाज से पर्चे गिरे, लिखा था समर्पण कर दो, जापान ने हार मान ली है. जापान हार मान ही नहीं सकता है. ऐसा उनका सोचना था. जाहिर है ये प्रोपगंडा था. हीरू एंड कम्पनी का संघर्ष जारी रहा. छह साल बाद उनका एक साथी भाग गया. फिर पर्चे गिरे, जिसमें साथी के सरेंडर की जानकारी थी. इससे वे गुस्से में आ गए. सबने मौत तक देश के लिए संघर्ष करने की कसम खायी. कोई भागे, तो दूसरे को उसे गोली मारने का हक था.


पर्वत की तलहटी पर किसानी शुरू हो गई थी. दल ने चर्चा की, तय हुआ कि ये किसान नहीं, अमरीकी जासूस थे, जो भेस बदलकर उनकी टोह लेने आए थे. इसलिए वे किसानों को मारते, फसलें जला देते और खाने भर का सामान लूट लेते थे. ऐसी ही एक रेड में उनका एक साथी मारा गया.


अब सिर्फ 2 बचे..! दस बारह साल बाद एक साथी मर गया. अकेले हीरू को एक दिन एक जापानी युवक मिला. हीरू ने उसे बंधक बना लिया. बंधक ने बताया कि युद्ध तो 30 साल पहले ख़त्म हो चुका. सरेंडर, एटम बम और आज की सोसायटी की उसने जानकारी दी. हीरू अब भी उसकी बात पर यकीन नहीं कर पा रहा था. उसे कमांडिंग अफसर का आदेश था, सरेंडर नहीं करना है.


युवक को उसने छोड़ दिया. वो युवक जापान जाकर हीरू के कमांडिंग अफसर को खोज निकाला. उसे फिलीपींस लाया. हीरू के पहाड़ पर कमांडिंग अफसर अकेले गया. उसे शाबाशी दी और कहा- युद्ध खत्म हो गया है. सरेंडर कर दो.


ये सन् 1974 की बात है. फटी हुई वर्दी पहने हीरू ने, अपनी एसाल्ट गन, कुछ कारतूस और समुराई तलवार के साथ फिलीपींस के राष्ट्रपति के समक्ष समर्पण किया. उस पर 30 से ज्यादा हत्या के केस थे. मगर पार्डन (माफी) दी गईं. हीरू अपने देश लौटा. अपना देश उसे पहचान में ही नहीं आ रहा था. उसकी कल्पना तो 1944 के टाइम जोन में ही फ्रीज हो गई थी.


हीरू की कहानी इतिहास की एक सच्ची घटना है. वह एक ख्याली युद्ध लड़ता रहा. हम सब इसी तरह अपना-अपना युद्ध लड़ रहे हैं. कुछ लोगों ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी है लेकिन अनेक हीरू ओनेडा आज भी अपने मोर्चे पर लड़ रहे हैं. यह उनका अपना वहम या ख्वाब है. आज हीरू अकेला नहीं है. अनेक हीरू आपके आसपास मिल जाएंगे. उनका अपना टाइमजोन है. ख्यालों की लड़ाई..! कोई पानीपत के मैदान में बाबर से लड़ रहा है, तो कोई औरंगजेब से..! हमारे दिमाग में एक ख्वाब है, जिसे पूरा करने के लिए हम लड़ रहे हैं.
                                         #सुरेश_प्रताप