डॉ बाबा साहब अंबेडकर के जीवन के शुरूआती दौर सोशल डिस्टंनसिंग सहने मे गये ! और बाद की जिंदगी उसे दूर करने में  !

डॉ बाबा साहब अंबेडकर जी की आज 129 वी जयंती है उनके जीवन के शुरूआती दौर में सोशल डिस्टंनसिंग सहनेमे गये ! और बाद की जिंदगी उसे दूर करने में  ! लेकिन कोरोना के बहाने अभी कुछ दिनों से पुनः सोशल डिस्टंनसिंग का अभियान चलाया जा रहा है यह फिलहाल आरोग्य के लीये प्रिहवेंशन के लिए  ठीक है लेकिन यह देश बडाही अजिब है  ! ऐसे ही छुआ छुत को मजबूत बनाने में मदद मिलती है  ! हजारों साल से यही तो चल रहा है और ऐसे संकट उसकेलिए कारण बनते हैं  ! जातीं का समर्थन करने वाले ऐसे ही तर्क देते आऐ है मुख्यतः श्रम करने वाले सभी लोगों को कम अधिक प्रमाणमे छुआ-छूत के अंदर हजारों सालोंसे ढकेला गया है सभी समाज सुधारकोने इसके खिलाफ अपनी जिंदगी दावपर लगा दी है जिसमें हालके दिनों का ताजा उदाहरण बाबा साहब का है  !
           पिछले साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री दलितोकी बस्तीयोमे जानेके पहले साबुन की टिकीया बाटते थे और उन्होंने अपने आप को ठीक से साफ किया है कि नहीं यह देखने के बाद ही उनसे मिलने की इजाजत दी जाती थी  ! उस समय कोरोना नाम पैदा भी नहीं हुआ था  ! 
         इस के अलावा हमारे हिंदू धर्म की महान जातीं व्यवस्था ने हजारों सालों से उंच-नीच के आचरण के कारण दलीत और पिछड़े वर्ग के लोगों के साथ कितना अमानवीय व्यवहार किया है और इसी कारण बुद्ध, महावीर, ने ढाई हजार सालपहले इस प्रथा के खिलाफ पहले बड़े विद्रोह और उसके बाद पूरी संत परंपरा फिर अंग्रेजी राज के समय ज्योतिबा फुले ने आवाज बुलंद की  ! लेकिन इस बिचमे 1500 साल पहले दलित, पिछडी जातियों के लोग उंच निच से तंग आकर इसलामिक और ईसाई धर्म अपनाये है  ! एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में कुरान लेकर मुस्लिम आक्रमक भारतीय भुमी पर आये यह संघ परिवार का प्रचार बिलकुल गलत है  ! कयोंकि अगर ऐसा हुआ होता तो सुरेश खैरनार, मोहन भागवत, नरेन्द्र मोदी, और भी 75% प्रतिशत आबादी तब भी औरआज भी जो दिखाई दे रही है इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है  ? 
        भारत में ज्यादातर धर्म परिवर्तन हमारी सडी गली जातीं व्यवस्था के कारण हुआ है और उसका सबसे ताजा उदाहरण बाबा साहब के 1936 में येवला के ऐतिहासिक संकल्प लिया था कि मैं हिंदु के रूप में पैदा तो हुआ लेकिन हिंदु के रूप में मरने वाला नहीं हूँ  ! कयोंकि बाबा साहब खुद उसके भृक्तभोगी रहे हैं ! और 20 साल के बाद 1956 के दशहरे के दिन अपने लाखों अनुयाइयों के साथ बौद्धधर्म में इसी नागपुर के ऐतिहासिक दिक्षाभुमिपर अपने लाखों अनुयाइयों के साथ  शामिल हो गए  ! और यह सिलसिला आज भी जारी है हर धम्मचक्र परिवर्तन के दिन हजारों की संख्या में लोग धर्म परिवर्तन कर रहे हैं  ! इसमें कौन सी तलवार बंदूक के बल पर हो रहा है  ? यह भारत की सबसे विकृत जातिवाद के खिलाफ विद्रोह है और तथाकथित उच्च वर्ग के मुँहपर करारा तमाचा है  !
       बाबा साहब के नाम पर बडे बडे स्मारक और समारोहों की भरमार तो खुब हो रहे हैं लेकिन उनके दियें हुऐ संदेशों का क्या  ? आज भी पिछडी जाँतियो के लोगों को बराबरी का दर्जा दिया गया है  ? हर रोज अट्रोसीटि की खबरों से अखब़ारों के पन्ने भरे हुए हैं  ! 
        और अब इस नईं बिमारी के बाद भारत की जाती जो नहीं जाती वाली कहावत को चरितार्थ करने का मौका मिला है सोशलडीस्टंनसिंग के  बहाने  ! मिलने की संभावना है 
        हालांकि मैं उम्मीद करता हूँ की यह बीमारी आज न कल जाने वाली है इसबारेमे मेरे मन में कोई शंका नहीं है लेकिन इसके कारण हमारे जीवन से जुड़े सभी पहलुओं के जिसमें विकास की अवधारणा पर पुनर्विचार करना चाहिए   सामाजिक, आर्थिक, औद्योगिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक, कृषि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गुजरना हमारे लिए बहुत बडी परीक्षा की घड़ी सामने आ करके खडी है  ! बाबा साहब की 129 वी जयंती पर यहीं  मेरा मुक्तचींतन है  !
        डाॅ सुरेश खैरनार,


नागपूर 14 एप्रिल 2020 डाॅ बाबा साहब अंबेडकर 129 वी जयंती पर