आओ ऐसा भारत बनाएं  सब एक - दूजे के काम आएं 

मानवता की सेवा के लिए मस्जिद और गुरुद्वारा एक हो गए. गुरुद्वारे में लंगर बंद था, असलम चौधरी ने गुरुद्वारे से बर्तन उधार मांगा ताकि ज्यादा खाना बनाकर लोगों को खिला सकें. गुरुद्वारे ने बर्तन भी भेजे, साथ में दो रसोइये भी भेज दिए. जब गुरुद्वारा साथ आ गया तो असलम को मस्जिद की जगह भी मिल गई. दिल्ली के कालू सराय इलाके में अब मस्जिद और गुरुद्वारा मिलकर इंसानियत की सेवा कर रहे हैं.


असलम चौधरी का कैटरिंग का व्यवसाय है. चौधरी का कहना है कि "स्थिति बहुत खराब है. मुझे भोजन के लिए बहुत हताशा भरे फोन आ रहे हैं." लॉकडाउन के शुरू में वे अपनी जरूरत से ज्यादा खाना पकाकर लोगों में बांटने लगे. इसके लिए उन्होंने लोगों को भी रख लिया. चौधरी का मेस बेसमेंट में है. वहीं से खाना बनाकर लोगों को खिलाना शुरू किया. बाद में गुरुद्वारा के लोग उनके साथ आ गए. बेसमेंट में अंधेरा और घुटन थी, इसलिए रसोई को अब खाली पड़ी मस्जिद में शिफ्ट कर दिया गया. 


गुरुद्वारा श्री सिंह सभा के सेवादार हरबंस सिंह और सुरेंद्र सिंह, 30 मार्च से ही हर रोज सुबह मस्जिद पहुंचते हैं. उनके पहुंचने तक असलम चौधरी अन्य लोगों के साथ चावल और सब्जियों का इंतजाम करके रखते हैं. वे मिलकर पुलाव, खिचड़ी या जो भी बनाना तय हो, बनाते हैं और फिर लोगों को खिलाते हैं. 


हर दिन का मैन्यू अलग है. चूंकि दिल्ली की तमाम झुग्गियों में या मजदूर बस्तियों में खाना पहुंचाना उनका लक्ष्य है, इसलिए वे आसान आइटम तैयार करते हैं. यह ध्यान रखते हैं कि खाना पौष्टिक हो, ताकि किसी को दिन में एक बार भी खाना मिले तो उसके 24 घंटे कट जाएं. 


रसोइया सुरेंद्र सिंह और सुपरवाइजर हरबंस सिंह का कहना है कि "हम यहां जो कर रहे हैं, वह लंगर से बहुत अलग नहीं है. यह ईश्वर की कृपा है और जब तक लॉकडाउन जारी है हम सेवा करेंगे." वे हजारों भूखे लोगों का रोज पेट भर रहे हैं. 


मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारा जाने वाले क्या सच में इनसे कुछ सीखते होंगे? जो इनसे सीखते हैं, वे मानवता की सेवा करते हैं. जो व्हाट्सएप से, भाषणों से और रैलियों से धर्म सीखते हैं, वे धर्म की घृणित राजनीति करते हैं और नफरत फैलाते हैं. 


देश पर संकट आया तो कुछ लोगों ने भूखों को खाना खिलाना चुना, कुछ ने लोगों की जान बचाना चुना, कुछ ने नफरत फैलाना चुना. आपको चुन लेना है कि असली धर्म क्या है? 


(कारवां ने4अप्रैल को यह कहानी विस्तार से छापी है)


@ Krishna Kant