नङ्ग धड़ंग धूसरित बच्चे
फाकामस्ती में ।।
आओ साहब, आकर देखो!
गन्दी बस्ती में ।।
पउआ भर का दूध का पाउच
शक्कर- पत्ती-चाय
धनिया-मिर्ची-हल्दी-जीरा
जितनी घर की आय ।।
नित-नित कुआँ खोदते पीते
लोग गृहस्थी में ।।
बात-बात पर मारा-मारी
झंझट है हर पल।
दो दिन में इक दिन ही आता
है सरकारी नल ।।
दुनिया भर के दर्द मगर खुश
अपनी हस्ती में ।।
बदबू उठती है संड़ास से
घिनयाती नाली।
टीन, टाट के छानी, छप्पर
हँसते दे ताली ।।
सम्बंधों की डोर बंधी है
हालत खस्ती में ।।
अब तक वोटर कार्ड मिला न
मिलता क्या राशन ।
बीच शहर में इस धब्बे से
चिंतित है शासन ।।
विस्थापन की फ़ाइल अटकी
जिनकी नश्ती में।।
@ दौलतराम प्रजापति ।
Daulatram Prajapati