ये पोस्ट कोरोनो से इतर है.. दीपक कबीर

मैं कहता रहा हूँ लगातार इधर उधर जूझते रहने से सिर्फ हम खुद को थकाएँगे, पूंजीवादी-साम्प्रदायिक गठजोड़ और इस नफरत से लड़ने का एक ठोस रोड मैप होना चाहिये.., सिर्फ 250 लोगों की केस हिस्ट्री ठीक से एनालाइज कर ली जाय तो हम इनकी व्यवहारिक वर्क कल्चर और उससे होने वाले प्रभाव तथा काट दोनों समझ सकेंगे।


देखते ही देखते भारत इस कदर अवैज्ञानिक, इस कदर अतार्किक और नफरती कैसे हो गया ?  मंहगाई,बेरोज़गारी जैसे जिन मुद्दों पर खुद लोग आग उगलते थे अब उससे ज़्यादा खराब हालात में सरकारी भोंपू बनने को तैयार हैं..


आज मेरे फेसबुक मेमोरी में 2013 की एक पोस्ट दिखी। ये पोस्ट नीचे मैं दे रहा हूँ। ये उस दौर में भगत सिंह की शहादत दिवस के पहले लिखी गयी थी। इस पोस्ट को एक नौजवान ब्राह्मण लड़के ने अपनी वाल पर न केवल कॉपी पेस्ट किया था बल्कि हर कमेंट को लाइक कर रहा था।


देश और समाज से प्यार करने ,उसे बदलने की चाह रखने वाला आम लड़का था। इस बीच 2014 आया..वॉट्सएप्प सब तक पहुंचा.. और धीरे धीरे ऐसी बातें पसंद करने वाला लड़का एक नफरती-ज़हरीले भक्त में बदल गया, उसकी व्यक्तिगत ज़िंदगी अभी भी वैसी ही है मगर सोशल मीडिया पर उसकी कवर फ़ोटो पर हमेशा के लिये मोदी आ गये, प्रोफाइल पिक्चर पर वो चाकू-फरसे से लिखा हुआ राम आ गया, आई स्पोर्ट कैब आ गया और "कट्टर "संबोधन के साथ धर्म आदि की नई प्रोफ़ाइल भी बन गईं।


वो कौन सी सूचनाएं, गलत तथ्य , नफरत,झूठ का तेज़ाब रोज़ पहुंचाया गया कि अपनी मंहगाई,बेरोज़गारी से परेशान होकर भी, 180 डिग्री पलट कर वो ऐसा हो गया जो 2013 यानी कॉंग्रेस और अखिलेश के वक़्त के भारत मे ऐसी पोस्ट कॉपी पेस्ट करता और फैलाता था..,


चूक उसकी उतनी नहीं है जितना अपराध इस प्रोपेगंडा का है, निशाना मूल समस्या पर लगाना होगा। आप इस पोस्ट को पढ़िये
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#इस_अँधेरे_दौर_में_जब_तलक_न_भोर_हो
#भगतसिंह_राजगुरु_सुखदेव_के_शहादत_दिवस_पर
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नहीं ! रुको !!
भगत सिंह की सिर्फ तस्वीर मत शेयर करो..


हो सके तो इसके विचारों को पढ़ो...
और हिम्मत है..तो मानो,..अमल में लाओ..
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तुम्हें मालूम है ..
ये उतना ही पक्का नास्तिक था ..
जितने कट्टर तुम हिन्दू..हो..
मुसलमान हो..सिख हो...ईसाई हो,
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ये पक्का समाजवादी था..
और साम्यवाद से प्यार करता था...
साम्यवाद का मतलब...कम्युनिज़्म.,
यानी कम्युनिस्ट ..
जिनके बारे में सिर्फ
अफवाहें..,गलतफहमियां..
और झूठे प्रचार ही सुने होंगे ..


ज़रा सोचो..अशफाक उल्ला खान ,भगत सिंह, क्रन्तिकारी शिव वर्मा, सुभाष चन्द्र बोस,कैप्टन लक्ष्मी सहगल
मुंशी प्रेमचंद ,कैफ़ी आज़मी, रही मासूम रज़ा,फैज़ अहमद फैज़,कवि मुक्तिबोध, बाबा नागार्जुन, त्रिलोचन,..फिल्मकार के.आसिफ,महबूब,उत्पल दत्त,
या ऐसे सैकड़ों हज़ार बेहतरीन इंसान
सब कम्युनिज़्म के समर्थक क्यों थे ..??
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अगर तुममें इंसानों को बराबरी का दर्ज़ा 
देने की हिम्मत है...
दलितों,आदिवासियों  और औरतों को
 दया नहीं..
बल्कि उनके अधिकार देने की हिम्मत है ..


किसी अम्बानी,अडानी ,टाटा,गोदरेज,मोदी, अमित शाह, योगी, ठाकरे ,अडवानी,मनमोहन
सिंह,सिंधिया,तोगड़िया,लियाकत अली,
जिया उल हक, जार्ज बुश ..
की आँखों में आँखे ड़ाल कर 
उससे फायदा उठाने की बजाय ..
उसे साफ़ साफ़ गलत कहने ..
मुर्दाबाद कहने की हिम्मत है...
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हिम्मत है..
कि मरते समय ये जान लो 
कि ये आखिरी क्षण है..
न कोई स्वर्ग का लालच ,न जन्नत,
न दुबारा जन्म,न अमर आत्मा ,न मोक्ष ...


फिर भी  तेईस बरस की उम्र ,बिना एक भी माफी मांगे, बिना डरे, किताब पढ़ते हुये,हंसते हुये फांसी पर चढ़ो.....


हिम्मत है कि कह सको...
खुदा ने इंसान को नहीं..
बल्कि इंसानों ने खुदा को बनाया ...


वो भी थोड़े डर से ....थोड़े अज्ञान से .....
और ज़्यादा इसलिए कि कमजोरों और औरतों का शोषण किया जा सके ..
राज सत्ताओं को कायम रखने के लिए ...
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हिम्मत है कि वैज्ञानिक नजरिया ...
और तार्किक द्रष्टिकोण अपना कर जी सको..


जनेऊ तोड़ के ,दाढ़ियाँ कटा के..,
रोज़े छोड़ के ..,पगड़ी उतार के ../
बिना आयत पढ़े ,बिना नारियल फोड़े, 
बिना दही का टीका लगाये..
बिना स्वास्तिक बनाये...नीबूं मिर्चा लटकाये
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किसी डोक्टर ने नहीं कहा ..
न ही किसी खुदा ने...,
कि इस लड़के..या इसके साथियों क़ी 
तस्वीर शेयर करो..


न अन्ना से ,न केजरीवाल से ..न रामदेव से न शिवसेना..तोगड़िया..मोदी से ..,न खालिस्तानियों से ...न जेहादियों से न बजरंगदलियों से न फ़र्ज़ी समाजवादियों से 
और न तुमसे  ही ।


हिम्मत है तो इसके विचारों को शेयर करो 
मेरे दोस्त ...,हिम्मत है तो सच में जियो...
सच को जियो ..


देश -सरकार- जनता और समस्याओं पर इसके लिखे विचारों को तो पढ़ो..
फिर हिम्मत हो तो इसे सिकुलर , लिब्रान्डु, गद्दार, देशद्रोही, मुल्ला, वामी, कहो...


या खुद इन शब्दों इन विचारों से तौबा करो


--दीपक कबीर